संगीत के प्रकार – Sangeet Ke Prakar

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हमारे शास्त्रकारों द्वारा संगीत का वर्गीकरण

शास्त्रीय संगीत के प्रकार

Sangeet Ke Prakar – भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा में, संगीत को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है:

  1. मार्गी संगीत:

    • यह संगीत मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताता है। प्राचीन समय में गांधर्व लोग इस संगीत का प्रयोग करते थे। वर्तमान समय में मार्गी संगीत का स्वरूप प्रचलित नहीं है।
  2. देशी संगीत:

    • यह साधारण जनता द्वारा प्रयोग किया जाने वाला संगीत है। इसे ‘गान’ भी कहते हैं। ताल की दृष्टि से देशी संगीत के दो मुख्य प्रकार हैं: 1. तालबद्ध संगीत (निबद्ध गान): यह ताल में बंधा हुआ संगीत है। इसके कई प्रकार होते हैं, जैसे ध्रुपद, धमार, ख्याल, ठुमरी, लक्षण-गीत आदि।
      • ताल रहित संगीत (अनिबद्ध गान): इसका केवल एक प्रकार होता है, जिसे आलाप कहते हैं।
  • आम जनता द्वारा मनोरंजन और आनंद के लिए गाया जाने वाला संगीत।
  • अपेक्षाकृत लचीला और प्रयोगात्मक, क्षेत्रीय विविधता और शैलियों को दर्शाता है।
  • भजन, लोकगीत, ठुमरी, दादरा, फिल्मी गीत जैसे रूपों में शामिल है।

देशी संगीत के प्रकार

ताल की दृष्टि से देशी संगीत को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है:

1. तालबद्ध संगीत (निबद्ध गान) :
  • लय और ताल पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • यह ताल में बंधा हुआ संगीत है। इसके कई प्रकार होते हैं, जैसे ध्रुपद, धमार, ख्याल, ठुमरी, लक्षण-गीत आदि।
2. ताल रहित संगीत (अनिबद्ध गान) :
  • निश्चित ताल के बिना गाए जाने वाले गीत।
  • इसका केवल एक प्रकार होता है, जिसे आलाप कहते हैं।

गीत की परिभाषा

गीत वह साहित्यिक रचना है जिसमें भावों, विचारों और अनुभूतियों को संगीत की सहायता से व्यक्त किया जाता है। गीत आमतौर पर एक लय और ताल में लिखे जाते हैं, जिन्हें गाया जाता है। ये रचनाएँ कविता के रूप में होती हैं और इनमें संगीत की माधुर्य और सुर की विशेष भूमिका होती है।

  • गीत स्वर और लय-ताल बद्ध शब्दों की सुन्दर रचना को कहते हैं। गीत के शब्द सार्थक और निरर्थक दोनों हो सकते हैं।
  1. सार्थक शब्द: भजन, गीत, ठुमरी तथा ख्याल के शब्द सार्थक होते हैं।
  2. निरर्थक शब्द: तराने के शब्द नोम, तोम, तनन, देरे आदि निरर्थक होते हैं। उस्ताद अमीर खाँ का कहना था कि तराना के शब्द अरबी-फारसी भाषा से लिए गए हैं और इनका भी अर्थ होता है।
  • गीतों में शब्दों का प्रयोग भावनाओं, विचारों और कहानियों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
  • गीतों की रचना विभिन्न छंदों और रागों में की जाती है।

गीत के अवयव

प्रत्येक गीत को कुछ खंडों या भागों में बाँटा गया है जिन्हें अवयव कहते हैं। प्राचीन ध्रुपदों के चार अवयव होते हैं:

  • स्थाई
  • अन्तरा
  • संचारी
  • आभोग

आजकल 4 अवयवों वाले ध्रुपद बहुत कम गाये जाते हैं। ध्रुपद के अतिरिक्त शेष गीत के प्रकारों जैसे-ख्याल, तराना, ठुमरी आदि के केवल दो अवयव या भाग होते हैं, स्थाई और अन्तरा। गीत की स्थाई मन्द्र और मध्य सप्तक के स्वरों में और अन्तरा मध्य और तार सप्तक के स्वरों में रहता है।

  • आधुनिक गीतों में, आमतौर पर दो अवयव होते हैं: स्थाई और अन्तरा।
  • स्थाई गीत के मुख्य विषय या भाव को प्रस्तुत करती है, जबकि अन्तरा उस विषय को विकसित करती है।

गीत के प्रकार

भारतीय संगीत में गीतों की विस्तृत श्रृंखला है, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • ध्रुपद: शास्त्रीय संगीत का सबसे पुराना और औपचारिक रूप, जटिल रचनाओं और तालों की विशेषता है।
  • ख्याल: ध्रुपद से विकसित, अधिक लचीला और अभिव्यंजक रूप, कलाकार के रचनात्मकता और कल्पना पर जोर देता है।
  • ठुमरी: प्रेम और भावनाओं को व्यक्त करने वाला गीत, नृत्य के साथ भी गाया जाता है।
  • दादरा: ठुमरी से मिलता-जुलता रूप, हल्के-फुल्के और मनोरंजक गीतों के लिए जाना जाता है।
  • भजन: भक्ति गीत, ईश्वर या देवी-देवताओं की स्तुति में गाया जाता है।
  • लोकगीत: विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की लोकप्रिय परंपराओं से जुड़े गीत।
  • फिल्मी गीत: भारतीय सिनेमा का अभिन्न अंग, मनोरंजन और कहानी कहने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये केवल कुछ प्रमुख गीत प्रकार हैं, और भारतीय संगीत में अनगिनत अन्य रूप और शैलियाँ मौजूद हैं।

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