राग हमीर – Raag Hameer Bandish Notes

Raag Hameer – राग हमीर

इस पोस्ट में, हम राग हमीर परिचय (Raag Hameer Parichay) प्रस्तुत करते हैं, जिसमें Hameer Raag Notes, Raag Hameer Taan, और एक आकर्षक राग हमीर बंदिश (Raag Hameer Bandish) “कैसे घर जाऊ लंगरवा” के बारे में भी जानकारी मिलेगी, जो नोटेशन के साथ पूरी होगी।

Raag Hameer Parichay Bandish Note – Taan

राग हमीर परिचय

राग हमीर(Raag Hameer) भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण राग है, जिसकी उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी जाती है। यह राग अपनी विशिष्ट ध्वनि और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए जाना जाता है। इसमें दोनों मध्यम तथा अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। जाति संपूर्ण-संपूर्ण है । वादी स्वर धैवत तथा संवादी गंधार है । इसका गायन-समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।

 
राग हमीर आरोह अवरोह व पकड़
  • आरोह: सारे सा, गमपर्मप, गमधऽ निधसां
  • अवरोह: सांनिधप, र्म प ध प ग म रे सा
  • पकड़: सारे सा, ग म निध
  • यहाँ “मे” = तीव्र म (मध्यम)

 

राग हमीर परिचय
  • थाट: कल्याण
  • जाति: संपूर्ण-संपूर्ण
  • वादी स्वर: धैवत (ध)
  • संवादी स्वर: गंधार (ग)
  • गायन समय: रात्रि का प्रथम प्रहर
  • स्वर प्रयोग: इस राग में दोनों मध्यम (म) का प्रयोग होता है, और अन्य सारे स्वर शुद्ध होते हैं। 

Raag Hameer – मतभेद

  1. थाट की पहचान: राग हमीर को कुछ संगीतज्ञ बिलावल थाट का राग मानते हैं, क्योंकि इसका स्वरूप बिलावल से मिलता-जुलता है। हालांकि, इसे प्राचीन ग्रंथों में भी बिलावल थाट के अंतर्गत माना गया है।

  2. जाति की बहस: जबकि एक ओर इसे सम्पूर्ण जाति का राग माना गया है, दूसरी ओर भातखंडे जी ने इसके आरोह में पंचम को वर्जित माना है। इसके आरोह में आवश्यकतानुसार पंचम का प्रयोग किया जाता है, जैसे प ध प या प प सां। इस परस्पर विरोधी दृष्टिकोण को सुलझाने के लिए हमीर राग को अपवाद माना गया है।

Raag Hameer Bandishकैसे घर जाऊ लंगरवा

 

Raag Hameer Notes – Sthayi

 

ध  ー ー ー |  नि  ध  सां  सां |  ध  नि  प ध | मे  प  ग  म 
कै  ऽ   ऽ   ऽ |  से   ऽ   घ   र  | जा ऊ  ऽ लं | ग  र  वा  ऽ
x                 | 2                   | 0                | 3
 
ग  ग  ग  मरे | ग  म  ध  प  |  ग ー म  रे  |  सा  रे  सा ー
सु  न  पा ऽऽ | वे   ऽ मो  री | सा ऽ  स  न |  नँ  दि  या   ऽ
x                 | 2                | 0              | 3
 
ध  ー ー ध  | नि  ध  सां  रें  |  सां  नि  ध  प |  मे  प  ग  म 
छाँ ऽ   ऽ  ड़ | दे   ऽ   मो  हे |  ढी    ऽ  ठ  लं |  ग  र  वा  ऽ
x                 | 2                  | 0                 | 3
 
 
Raag Hamir Bandish – अंतरा 
 
प ー प  प | सां ー सां सां | सां  सां  सां ー |  सां   रें   सां ー 
हूँ  ऽ जो च | ली  ऽ  प   न | छ   ट   वा   ऽ |  ठा    ऽ  ढ़ी  ऽ
x              | 2                 | 0                  | 3
 
ध  ー ध   ध | सां ー सां ー |  सां   रें  सां  ー | ध  ध  प ー 
कौ ऽ  न   ब | हा  ऽ   ने   ऽ |  प्या  ऽ   रे    ऽ | ब  ल  मा  ऽ
x                 | 2                 | 0                   | 3
 
सां ー गं  गं  | मं  रें  सां  सां |  ध  ध  सां  सां | सां  रें  सां ー 
छी  ऽ  न  ल |  ई  ऽ  मो  री | सी  ऽ  स   ग  |  ग  रि या  S
x                | 2                 | 0                 | 3
 
सां  सां  ध  ध | धनि सांरें  सां  नि | ध   नि  प  ध | मे  प  ग  म 
बी   र  जो  ऽ |  रीऽ  ऽऽ  पी   ऽ | आ  ऽ  वे  सुं | द  र  वा  ऽ
x                 | 2                      | 0                | 3

Raag Hameer Taan – 8 Matra

सम से 8 मात्रा की तानें

  • सारे सासा गम रेसा । गम धप गम रेसा ।
  • गम धनि सांनि धप । मेप गम रेसा निसा ।
  • सांनि धप मेप गम । धनि सांनि धप मेप ।
  • पप गम रेसा धध । पप गम रेसा निसा ।
  • सारे सासा पध पप । सारें सांसां धप मेप।

राग हमीर की विशेषताएँ

  1. तीव्र मध्यम का प्रयोग: तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग केवल आरोह में पंचम के साथ होता है, जबकि शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में किया जाता है, जैसे में पध प, गमरे सा।

  2. वक्र स्वर प्रयोग: इसके आरोह में अधिकतर कोमल निषाद और वक्र गंधार का प्रयोग किया जाता है, जैसे- निध सां और ग म रे सा।

  3. रंजकता: राग की रंजकता बढ़ाने के लिए कभी-कभी अवरोह में धैवत के साथ कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है, जैसा कि कल्याण थाट जन्य रागों में देखा जाता है।

  4. पंचम का प्रयोग: ग अथवा म से तार सप्तक की ओर जाते समय आरोह में पंचम छोड़ा जाता है, जैसे- सारे सा, गम निध, निध सां।

  5. वक्रता और स्वर-संगति: आरोह में अधिकतर रे वक्र प्रयोग किया जाता है और सा से सीधे गंधार को चला जाता है, जैसे सारे सागमध।

  6. धैवत पर निषाद: धैवत पर निषाद का आस लेना इस राग की एक विशेषता है, जैसे- गम निध, निध सां।

न्यास के स्वर
  • सा, , और
समप्रकृति राग

राग हमीर की समप्रकृति राग हैं कामोद और केदार

विशेष स्वर-संगतियाँ
  1. सा रे सा, ग म नि ध
  2. सां नि ध ऽ मे प
  3. प प सां, रें सां ध प
  4. ग म रे, ग म नि ध ऽ मे प
  5. ग म प, ग म रे सा

राग हमीर अपने सौंदर्य और विविधता के लिए प्रसिद्ध है, और इसकी प्रस्तुति संगीत प्रेमियों को एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। इसकी समृद्ध ध्वनि और भावपूर्ण तानें इसे भारतीय शास्त्रीय संगीत के अनमोल रागों में एक विशेष स्थान दिलाती हैं।

How To Read Sargam Notes

कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • कोमल ग: ग(k) या
  • कोमल रे: रे(k) या रे
  • कोमल ध: ध(k) या
  • कोमल नि: नि(k) या नि

नोट: आप परीक्षाओं में (रे, , , नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।

तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • तीव्र म: म(t) या मे

स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।

तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।

मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।

  • उदाहरण: .नि = मंद्र सप्तक नि

तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।

    • उदाहरण: सां = तार सप्तक सा

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