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ठुमरी किसे कहते है – Thumri Kise Kahate Hain
ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक गायन शैली है। इसमें रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है। अर्थात जिसमें राग की शुद्धता की तुलना में भाव सौंदर्य को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विविध भावों को प्रकट करने वाली शैली है जिसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है साथ ही यह रागों के मिश्रण की शैली भी है जिसमें एक राग से दूसरे राग में गमन की भी छूट होती है और रंजकता तथा भावाभिव्यक्ति इसका मूल मंतव्य होता है। इसी वज़ह से इसे अर्ध-शास्त्रीय गायन के अंतर्गत रखा जाता है।
1. ठुमरी की उत्पत्ति
ठुमरी की उत्पत्ति लखनऊ के नवाब वाज़िद अली शाह के दरबार से मानी जाती है। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने इसे मात्र प्रश्रय दिया और उनके दरबार में ठुमरी गायन नई ऊँचाइयों तक पहुँचा क्योंकि वे खुद ‘अख्तर पिया’ के नाम से ठुमरियों की रचना करते और गाते थे। हालाँकि इसे मूलतः ब्रज शैली की रचना माना जाता है और इसकी अदाकारी के आधार पर पुनः पूरबी अंग की ठुमरी और पंजाबी अंग की ठुमरी में बाँटा जाता है| पूरबी अंग की ठुमरी के भी दो रूप लखनऊ और बनारस की ठुमरी के रूप में प्रचलित हैं।
2. ठुमरी गायन शैली – प्रारूप
ठुमरी की बंदिश छोटी होती है और श्रृंगार रस प्रधान होती है। भक्ति भाव से अनुस्यूत ठुमरियों में भी बहुधा राधा-कृष्ण के प्रेमाख्यान से विषय उठाये जाते हैं। ठुमरी में प्रयुक्त होने वाले राग भी चपल प्रवृत्ति के होते हैं जैसे: खमाज, भैरवी, तिलक कामोद, तिलंग, पीलू, काफी, झिंझोटी, जोगिया इत्यादि।[1] ठुमरी सामान्यतः छोटी लम्बाई (कम मात्रा) वाले तालों में गाई जाती हैं जिनमें कहरवा, दादरा, और झपताल प्रमुख हैं। इसके आलावा दीपचंदी और झपताल का ठुमरी में काफ़ी प्रचलन है।[1] राग की तरह ही इस विधा में एक ताल से दूसरे ताल में जाने की छूट भी होती है।
3. वर्तमान स्थिति
वर्तमान समय में इस विधा की ओर रूचि के कम होने का कारण शास्त्रीय गायन ही में रूचि का ह्रास है। बनारस के जाने-माने ठुमरी गायक पं॰ छन्नूलाल मिश्र की मानें तो अब ठुमरी गाने वाले कम हो गए हैं और बनारस घराने की गायकी की इस विधा को सीखने-सिखाने का दौर मंद पड़ गया है।[4] वहीं दूसरी ओर प्रयोग के तौर कुछ लोगों द्वारा वर्तमान समय में ठुमरी को पश्चिमी संगीत के साथ जोड़ कर ठुमरी के पारंपरिक वाद्यों, तबला, हारमोनियम, सारंगी और ढोलक के अलावा इसमें ड्रम्स, वॉयलिन, की-बोर्ड और गिटार के साथ अफ्रीकी ड्रम जेम्बे, चीनी बांसुरी और ऑर्गेनिक की-बोर्ड पियानिका का इस्तेमाल भी इस्तेमाल किया जा रहा है।[5]
4. ठुमरी की विशेषताएँ
1) ठुमरी एक भाव प्रधान तथा चपल चाल वाला गीत है। इसमें शब्द कम होते हैं,किन्तु शब्दों को हाव-भाव द्वारा प्रदर्शित करके गीत का अर्थ प्रकट किया जाता है।
2) इसकी गति अति द्रुत नही होती। इसके साथ दीपचन्दी अथवा जात्तताल और पंजाबी त्रिताल का वादन किया जाता है !
3) खमाज, देश, तिलक कमोद, तिलंग, पीलू , काफी , भैरवी, झिंझोटी तथा जोगिया आदि रागों मेंं गाई जाती है!
4)ठुमरी श्रृंगार रस प्रधान गायकी है। श्रृंगार रस के संयोग व वियोग दोंनो पक्षों को बोल बनाव की गायकी के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया जाता है।
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