राग शंकरा: Raag Shankara Parichay, Bandish

raag shankara

राग शंकरा परिचय

Raag Shankara Parichay – राग शंकरा की रचना बिलावल थाट से मानी गई है। इसमें आरोह (चढ़ाव) में रिषभ और मध्यम स्वर वर्ज्य हैं, जबकि अवरोह (उतार) में केवल मध्यम स्वर वर्ज्य है। इस कारण, इसकी जाति औडव-षाडव मानी जाती है। राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर षडज होता है। यह राग मध्य रात्रि में गाया और बजाया जाता है, और इसमें सभी स्वर शुद्ध होते हैं।

Raag Shankara Parichay

  • थाट: बिलावल
  • जाति: औडव-षाडव
  • वादी स्वर: पंचम (प)
  • संवादी स्वर: षडज (सा)
  • गायन समय: मध्य रात्रि
  • स्वर प्रयोग: सभी स्वर शुद्ध

Raag Shankara Aroh Avroh

  • आरोह: सा ग, प, नि ध सां।
  • अवरोह: सां निप, मि ध, सां नि प, ग, रे सा।
  • पकड़: निध सांनि ऽ प, ग प रेग सा।

राग शंकरा – मतभेद

जाति के विषय में मतभेद
  1. ध्रुपद गायक इसे औडव-औडव जाति का राग मानते हैं और रे, म पूर्णतया वर्ज्य रखते हैं।
  2. दूसरा मतानुसार इसे औडव-षाडव जाति का राग माना गया है, जिसे यहां समर्थन दिया गया है।
  3. तीसरे मतानुसार, केवल म वर्ज्य कर इसे षाडव-षाडव जाति का राग माना जाता है।
वादी-संवादी स्वर के विषय में मतभेद
कुछ विद्वान इसमें प सा, कुछ सा प और कुछ ग नि को वादी-संवादी मानते हैं। भातखण्डे जी ने ग नि को वादी-संवादी माना है। हालांकि, शंकरा में निषाद पर विशेष न्यास होता है, परंतु गंधार पर नहीं। इसीलिए  को वादी नहीं माना जा सकता, और जब ग वादी नहीं हो सकता तो निषाद किसी भी स्थिति में संवादी नहीं हो सकता।

राग शंकरा की विशेषताएं

  1. उत्तरांग प्रधान राग: राग शंकरा अपनी चलन और वादी-संवादी स्वर की दृष्टि से उत्तरांग प्रधान राग है। इसकी चलन मध्य सप्तक के उत्तर अंग और तार सप्तक में अधिक होती है।

  2. मींड का प्रयोग: अवरोह में गंधार से सा तक आते समय मींड का प्रयोग किया जाता है, और रिषभ अल्प रखा जाता है।

  3. वक्र धैवत: शंकरा के आरोह में धैवत का प्रयोग सीधा न होकर वक्र होता है। आरोह में धैवत का समावेश पाँच की संख्या पूरी करने के लिए किया गया है।

  4. स्वरों का विशेष प्रयोग: प से गंधार को आते समय सबसे पहले रे का कण लिया जाता है, और फिर ग का प्रयोग किया जाता है, जैसे: ग प रेग सा

न्यास के स्वर: सा, ग, प, और नि।
समप्रकृति राग: मालश्री।
विशेष स्वर-संगतियां:

    1. ग प, रेग सा।
    2. पग, पगसा।
    3. गप निधसांनि ऽ प।
 

Raag Shankara Bandish

राग शंकरा बंदिश – स्थायी

– – – – | – – – – | – – – – | – – – ग
ऽ ऽ  ऽ ऽ | ऽ ऽ ऽ ऽ | ऽ ऽ  ऽ ऽ | ऽ ऽ ऽ क
3            | x            | 2             | 0

प नि ध सां | नि – – प | ग – ग प | ग – सा सा
ल न  ऽ  प |  रे  ऽ ऽ ऽ | रै ऽ न ऽ | दि ऽ न श्या

– प ग ग | प – नि – | सां नि प प |  ग – सा –
ऽ म ऽ सुं | द ऽ  र ऽ | बि  न मो रे |आ ऽ ली ऽ

3            | x            | 2             | 0

राग शंकरा बंदिश – अन्तरा

प  – सां सां | सां – सां सां | सां गं गं प |  गं रें सां सां
सो ऽ  ह नी |  सू  ऽ  र  त  | मो ऽ ह नि | मू ऽ र त

नि नि नि सां | नि – प प | ग – – प |  ग रे  सा –
म  धु  र  सु  | हा ऽ व त | नै ऽ ऽ न | आ ऽ ली ऽ

3                | x            | 2           | 0

How To Read Sargam Notes

कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • कोमल ग: ग(k) या ग
  • कोमल रे: रे(k) या रे
  • कोमल ध: ध(k) या ध
  • कोमल नि: नि(k) या नि

नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।

तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • तीव्र म: म(t) या मे

स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।

तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।

मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।

  • उदाहरण: .नि = मंद्र सप्तक नि

तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।

    • उदाहरण: सां = तार सप्तक सा

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