संगीत में ताल का महत्व – Taal Ka Mahatva

Importance of Taal In Music​

ताल संगीत का आधार है। “संगीत में ताल का महत्त्व(Sangeet Mein Taal Ka Mahatva” पर आधारित इस लेख में, “ताल का महत्त्व” और उसकी भूमिका को समझें। गायक, वादक और नर्तक के लिए ताल की अनिवार्यता जानें और लय की दुनिया में राग की संगति का अनुभव करें।

Taal Ka Mahatva

संगीत में ताल का महत्व

Taal Ka Mahatvaस्वर और लय संगीत रूपी भवन के दो आधार स्तंभ हैं। स्वर से राग बने और य से ताल। लय नापने के लिए मात्रा की कल्पना की गई। साधारण तौर से दो तालियों के बीच के समय को एक मात्रा कहते हैं। लय के अनंत प्रवाह में असंख्य मात्राएँ हो सकती हैं। सुविधा के लिए थोड़ी-थोड़ी मात्राओं के कुछ समूह बनाए गए, जिन्हें ताल कहा गया। प्रत्येक ताल के कुछ हिस्से किए गए, जिन्हें विभाग कहा गया। तबला अथवा पखावज पर बजाने के लिए प्रत्येक ताल के कुछ निश्चित बोल भी स्वीकार किए गए। इससे यह सुविधा हुई कि गायक यह जान सके कि वह किसी भी समय ताल के किस मात्रा पर है।

संगीत गायन, वादन और नृत्य में ताल का महत्व

संगीत की त्रिवेणी गायन, वादन और नृत्य में ताल का बड़ा महत्व है। गायक और वादक को हमेशा ताल का ध्यान रखना पड़ता है। वे नई-नई कल्पनाएँ करते हैं, लेकिन ताल से बाहर नहीं जाते। जितनी सुंदरता से वे ताल में मिलते हैं, उतने ही उच्चकोटि के कलाकार माने जाते हैं। दूसरी ओर, अगर वे ताल में कच्चे रहते हैं, तो बेताला समझे जाते हैं। इस प्रकार, एक अच्छे कलाकार के लिए ताल में कुशल होना आवश्यक है।

आलाप और तालबद्ध संगीत

आलाप के अतिरिक्त, संगीत की सभी चीजें तालबद्ध होती हैं। इसीलिए आलाप के समाप्त होते ही ताल शुरू हो जाता है और जब तक गायन समाप्त नहीं होता, ताल चलता रहता है। स्थाई-अंतरा, बोल-तान, तान, सरगम आदि सभी ताल में रहते हैं। गीत के प्रकारों के आधार पर विभिन्न प्रकार के तालों की रचना हुई।

विभिन्न प्रकार के ताल

  • ख्याल के लिए तीनताल, एकताल, झपताल, झूमरा, तिलवाड़ा, रूपक आदि तालों का प्रयोग होता है।
  • ध्रुपद के लिए चारताल, शूलताल, तेवरा आदि तालों का उपयोग किया जाता है।
  • ठुमरी के लिए दीपचंदी जत आदि तालों की रचना की गई है।

इन तालों के बोल गीत की प्रकृति के अनुसार चुने गए हैं। इसलिए जब गायन या वादन के साथ तबला या पखावज बजाया जाता है, तो अधिक आनंद आता है। साधारण श्रोता को वे गीत अधिक पसंद आते हैं जो लय-प्रधान होते हैं। इसीलिए लोकगीतों और फिल्मी गीतों का अधिक प्रचार है।

नृत्य और ताल

गायन-वादन में स्वर और लय के माध्यम से और नृत्य में अंग-प्रदर्शन और लय के माध्यम से भावों को प्रकट किया जाता है। तबला के बोलों और टुकड़ों को भी नृत्य द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। तबले द्वारा जितनी अच्छी संगति होती है, आनंद उतना अधिक आता है।

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विशेषता

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विशेषता यह है कि समान मात्रा के कई ताल और गीत के प्रकार बनाए गए हैं। उदाहरण के लिए:

  • तेवरा और रूपक तालों की ७ मात्राएँ
  • झपताल और शूलफाक तालों की १० मात्राएँ
  • एकताल और चारताल की १२ मात्राएँ
  • झूमरा, आड़ा चारताल, दीपचंदी, और धमार तालों की १४ मात्राएँ
  • तीनताल और तिलवाड़ा तालों की १६ मात्राएँ

गीत और ताल का मेल

इसी प्रकार, ख्याल १०, १२ और १४ मात्रा में गाए जाते हैं, तो उन्हीं मात्राओं में ध्रुपद भी पाए जाते हैं। १४ मात्रा में ख्याल, ठुमरी और धमार (गीत का एक प्रकार) भी गाए जाते हैं।

  • ख्याल के साथ आड़ा चारताल या झूमरा ताल ही बजाया जाएगा, दीपचदी ताल नहीं।
  • १४ मात्रा की ठुमरी के साथ दीपचंदी ताल ही बजाई जाएगी, अन्य नहीं।

गीत के साथ उचित ताल का प्रयोग आवश्यक है, जिसका ज्ञान शिक्षा और अनुभव से प्राप्त होता है। उचित ताल के प्रयोग से ही संगीत में रस सृष्टि होती है और तभी आनंद प्राप्त होता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, संगीत में ताल का बड़ा महत्व है। यह संगीत को अनुशासित और संतुलित करता है, और कलाकार की कुशलता को दर्शाता है। सही ताल के साथ प्रस्तुत किया गया संगीत श्रोताओं को अधिक आनंद और संतोष प्रदान करता है।

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