थाट का परिचय और महत्व (Introduction and Importance of Thaat)
थाट किसे कहते हैं – thaat kise kahate hain
थाट भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह सप्तक के 12 स्वरों में से 7 मुख्य स्वरों के उस समूह को कहते हैं, जिनसे राग उत्पन्न होते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है, और यह शब्द प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में भी मिलता है। ‘अभिनव राग मंजरी’ में कहा गया है:
मेल स्वर-समूहः स्याद्राग व्यंजन शक्तिमान
अर्थात, स्वरों के उस समूह को मेल या थाट कहते हैं जिसमें राग उत्पन्न करने की शक्ति हो।अक्सर लोग यह सोचते हैं कि सबसे पहले थाट की रचना हुई है उसके बाद राग की रचना हुई होगी। इसका मुख्य कारण यह है कि वह समझते हैं भूपाली राग कल्याण थाट से उत्पन्न हुआ है।
वास्तव में यह बात बहुत भ्रामक है।
होना यह चाहिए कि कल्याण थाट, भूपाली राग से उत्पन्न माना गया है, न कि भूपाली राग, कल्याण थाट से उत्पन्न हुआ है।
थाट बनने के बहुत पहले से राग रागनी की रचना हो चुके हैं।
कुछ समय बाद राग रागिनी पद्धति की अवैज्ञानिकता सिद्ध किए जाने पर थाट वर्गीकरण के अंतर्गत समस्त रागों को 10 भागों में विभाजित कर दिया गया।
थाटों का नाम अलग-अलग रखने के लिए हमारे शास्त्रकारों ने यह सोचा कि प्रत्येक थाट से उत्पन्न माने गए सबसे अधिक प्रसिद्ध राग का नाम उसके थाट को दे दिया जाए।
थाट के लक्षण और विशेषताएँ (thaat in music in hindi )
1. थाट का स्वरूप (Structure of Thaats)
सात स्वर: प्रत्येक थाट में अधिकतम और न्यूनतम सात स्वर प्रयोग किए जाने चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि थाट से सम्पूर्ण रागों की उत्पत्ति हो सके।
स्वरों का क्रम: थाट में स्वरों का क्रम स्वाभाविक होना चाहिए। उदाहरण के लिए, सा के बाद रे, ग, म, प, ध, और नी का क्रम होना चाहिए। स्वर शुद्ध या विकृत रूप में हो सकते हैं, जैसे भैरव थाट में कोमल रे-ध और कल्याण थाट में तीव्र म प्रयोग होते हैं।
2. आरोह-अवरोह की आवश्यकता (Aaroh-Avroh Necessity)
थाट में आरोह-अवरोह की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि प्रत्येक थाट का आरोह और अवरोह समान होता है। इससे थाट की पहचान होती है।
3. गान में प्रयोग (Usage in Singing)
थाट गाया या बजाया नहीं जाता। इसलिए इसमें वादी-सम्वादी, पकड़, आलाप-तान आदि की आवश्यकता नहीं होती।
4. राग उत्पन्न करने की क्षमता (Capacity to Produce Raagas)
थाट में राग उत्पन्न करने की क्षमता होती है, लेकिन इसे गाया या बजाया नहीं जाता। इसलिए इसकी मधुरता आवश्यक नहीं होती।
थाट के प्रकार (Types of Thaats)
हिन्दुस्तानी संगीत-पद्धति में आजकल 10 थाट माने जाते हैं। इन थाटों से समस्त राग उत्पन्न होते हैं। आधुनिक काल में पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे ने थाट पद्धति को लोकप्रिय बनाया और 10 थाटों की पहचान की। थाटों के नाम और स्वर निम्नलिखित हैं:
10 थाट के नाम – 10 Thaat Ke Naam
1. बिलावल थाट (Bilawal Thaat)
- स्वर: प्रत्येक स्वर शुद्ध
2. कल्याण थाट (Kalyan Thaat)
- स्वर: तीव्र म, अन्य स्वर शुद्ध
3. खमाज थाट (Khamaj That)
- स्वर: कोमल नि, अन्य स्वर शुद्ध
4. आसावरी थाट (Asavari That)
- स्वर: कोमल ग, ध, नि; अन्य स्वर शुद्ध
5. काफी थाट (Kafi Thaat)
- स्वर: कोमल ग, नि; अन्य स्वर शुद्ध
6. भैरवी थाट (Bhairavi Thaat)
- स्वर: कोमल रे, ग, ध, नि; अन्य स्वर शुद्ध
7. भैरव थाट (Bhairav Thaat)
- स्वर: कोमल रे, ध; अन्य स्वर शुद्ध
8. मारवा थाट (Marwa Thaat)
- स्वर: कोमल रे, तीव्र म; अन्य स्वर शुद्ध
9. पूर्वी थाट (Poorvi Thaat)
- स्वर: कोमल रे, ध; तीव्र म; अन्य स्वर शुद्ध
10. तोड़ी थाट (Todi Thaat)
- स्वर: कोमल रे, ग, ध; तीव्र म; अन्य स्वर शुद्ध
थाटों का संक्षिप्त विवरण (Summary of Thaats)
इस दोहे से थाटों का स्वरूप आसानी से याद किया जा सकता है:
भैरव भैरवि आसावरी, यमन बिलावल थाट।
तोड़ी काफी मारवा, पूर्वी और खमाज।।
शुद्ध सुरन की बिलावल, कोमल निषाद खमाज।
म तीवर स्वर यमन मेल, ग नि मृदु काफी थाट।।
गधनि कोमल से आसावरी, रे ध मृदु भैरव रूप।
रे कोमल चढ़ती मध्यम, मारवा थाट अनूप।।
उत्तरत रे ग ध अरु नी से, सोहत थाट भैरवी।
तोड़ी में रेग धम विकृत, रेधम विकृत थाट पूर्वी।।
Important Note
थाट भारतीय शास्त्रीय संगीत में रागों की उत्पत्ति का आधार है। इसके स्वरूप और संरचना का सही ज्ञान संगीतकारों और विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है। थाट की विविधता और लक्षण इसे एक महत्वपूर्ण संगीत संरचना बनाते हैं, जो विभिन्न रागों के विकास में सहायक होते हैं
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