raag multani Parichay – राग मुलतानी परिचय

raag multani – राग मुल्तानी

तीवर मध्यम कोमल रिगध, आरोहन रिध हानि।
पस वादी सम्वादी ते, गुन गावत मुलतानि ।।

राग मुलतानी का परिचय – मुलतानी की उत्पत्ति तोड़ी थाट से मानी गई है। इसमें रे, ग, ध स्वर कोमल तथा म तीव्र लगता है। वादी स्वर पंचम तथा संवादी षडज है। आरोह में ऋषभ और धैवत स्वर वर्ज्य हैं, किन्तु अवरोह में सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। अतः इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है। इसे दिन के चौथे प्रहर में गाते-बजाते हैं।

raag multani Parichay

Raag Multani Notes

  • आरोह – .नि सा मे मेप, निसां।
  • अवरोह – सां नि प, मे , मे रे सा।
  • पकड़ – .नि सा मे ऽ मे प, मे  मे ऽ रे सा ।

राग मुलतानी की संरचना

  • थाट: तोड़ी
  • स्वर: कोमल रे, ग, ध; तीव्र म
  • वादी: पंचम
  • संवादी: षडज
  • जाति: औडव-सम्पूर्ण
  • गायन समय: दिन का चौथा प्रहर (दोपहर 3 से शाम 6 बजे तक)

राग की विशेषताएँ

  1. मंद्र निषाद से शुरुआत – इस राग में प्रायः आलाप और तानों की शुरुआत मंद्र निषाद से होती है, जिससे इसका गंभीर प्रभाव उभरता है।
  2. मींड और स्वर संगति – जब मंद्र निषाद से मध्य गंधार तक जाते हैं, तो पहले तीव्र मध्यम का स्पर्श करते हैं और फिर मींड द्वारा गंधार तक पहुंचते हैं। यह मुलतानी की विशेषता है।
  3. तीनों सप्तकों में स्वतंत्रता – राग मुलतानी की चलन मंद्र, मध्य और तार तीनों सप्तकों में समान रूप से होती है।
  4. परमेल-प्रवेशक राग – यह तोड़ी थाट से संबंधित होने के बावजूद, पूर्वी, मारवा और भैरव थाट में प्रवेश कराता है, इसलिए इसे परमेल-प्रवेशक राग भी कहा जाता है।
  5. मधुवंती से समानता – यदि इस राग में ऋषभ और धैवत को शुद्ध कर दिया जाए, तो यह राग मधुवंती बन जाता है।

raag multani bandish

 

स्थायी −

प − | मे  | प − |  − | रे  सा | − सा
नै − | न  न | में − | आ − | न बा | − न
×    | 0      |2     |0      |3        |4

.नि − | सा  मे |   मे | प  − |   मे | प  नि
कौ − | न  सी | –   प  | री − |  −  − |  −  −
×       | 0       |2       |0      |3        |4

अंतरा

प  प | − | −  मे | प  नि | −  सां | −  सां
नि − | − दि | − न | सो  − | −  ब  | −  त
×     | 0       |2     |0       |3        |4

नि नि | सां गं | रें  सां | नि   – | सां  नि | ध  प
प   ल | − क | −   न  | खो − | −   ल  | − त
×       | 0      |2         |0       |3         |4

प म | प नि | – सां | रें – | रें सां | – सां
ज ब | − दे | − खो | मु − | ख श्या | − म
× | 0       |2     |0      |3        |4

मे प |सां नि | ध प | नि सां | मग मे | प नि
कि − | − ख | री − | − − | − −
× | 0       |2     |0      |3        |4

raag multani

विशेष स्वर-संगतियाँ-

  • निसा मंग ऽ रे सा,
  • नि सा मंग ऽ मं प,
  • प, मंगमं ऽग, रेसा,
  • गमं पनि ऽधप,
  1. न्यास के स्वर – सा, ग, प और नि
  2. समप्रकृति राग – तोड़ी
  • मुलतानी – नि सा मंग ऽ मं प, मंग, मं ग रे सा,
  • तोड़ी – सारेगमंग, रेगरेसा।

स्वरों का अध्ययन-

  • सा-सामान्य
  • रे- आरोह में लंघन अल्पत्व तथा अवरोह में अलंघन बहुत्व
  • ग- दोनों प्रकार का बहुत्व
  • मं- अलंघन बहुत्व
  • प- दोनों प्रकार का बहुत्व
  • ध- आरोह में लंघन अल्पत्व और अवरोह में अलंघन बहुत्व
  • नि-दोनों प्रकार का बहुत्व

How To Read Sargam Notes

कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • कोमल ग: ग(k) या 
  • कोमल रे: रे(k) या रे
  • कोमल ध: ध(k) या 
  • कोमल नि: नि(k) या नि

नोट: आप परीक्षाओं में (रेनि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।

तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • तीव्र म: म(t) या मे

स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।

तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।

मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।

  • उदाहरण: .नि = मंद्र सप्तक नि

तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।

    • उदाहरण: सां = तार सप्तक सा

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