Raag Gaud Sarang Parichay, Bandish Aur Taan
इस पोस्ट में, हम राग गौड़ सारंग का परिचय (Raag Gaud Sarang Parichay) प्रस्तुत करते हैं, जिसमें Gaud Sarang Raag Notes, Raag Gaud Sarang Taan, और एक आकर्षक राग गौड़ सारंग बंदिश (Raag Gaud Sarang Bandish) “पलना लगी मोरी अँखिया ” के बारे में भी जानकारी मिलेगी, जो नोटेशन के साथ पूरी होगी।
राग गौड़ सारंग: एक विस्तृत परिचय
भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध धरोहर में राग गौड़ सारंग एक महत्वपूर्ण राग है, जिसकी रचना कल्याण थाट से मानी जाती है। यह राग अपनी अनूठी संरचना और मधुरता के लिए जाना जाता है। इस राग की विशेषता है कि इसके आरोह और अवरोह में सभी स्वर वक्र रूप में प्रयोग किए जाते हैं, जिससे इसकी जाति वक्र सम्पूर्ण होती है।
राग गौड़सारंग आरोह अवरोह पकड़
- आरोह – सा, ग रे म ग , प मे ध प, नि ध सां।
- अवरोह – सां ध नि प, ध मे प ग, म रे, प ऽ रे सा।
- पकड़ – सा ग रे म ग, प ऽ रे सा।
राग गौड़ सारंग परिचय – Raag Gaud Sarang Parichay
- थाट: कल्याण
- जाति: वक्र सम्पूर्ण
- वादी स्वर: गंधार (ग)
- संवादी स्वर: धैवत (ध)
- गायन समय: मध्याह्न काल (दोपहर)
मतभेद
प्राचीन ग्रंथकारों ने राग हमीर, केदार और कामोद की तरह ही राग गौड़ सारंग को बिलावल थाट का राग माना था। इसका कारण यह था कि इन रागों में केवल शुद्ध मध्यम (म) का प्रयोग किया जाता था। लेकिन जब से इन रागों में तीव्र मध्यम का प्रयोग शुरू हुआ, तब से इसे कल्याण थाट से जन्य माना जाने लगा। कुछ आधुनिक संगीतज्ञ इसे कल्याण थाट का राग मानते हैं।
राग गौड़ सारंग विशेषताएँ
तीव्र मध्यम का प्रयोग: तीव्र मध्यम का अल्प प्रयोग आरोह-अवरोह में केवल पंचम के साथ होता है, जबकि शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में होता है।
कोमल निषाद का प्रयोग: राग की रंजकता बढ़ाने के लिए कभी-कभी अवरोह में कोमल निषाद का अल्प प्रयोग हमीर और केदार राग के समान किया जाता है, जैसे – सांधनिप।
प गरे की संगति: इस राग में प गरे की संगति महत्वपूर्ण मानी जाती है, और प्रत्येक आलाप के अंत में इसका प्रयोग होता है।
वक्र-सम्पूर्ण जाति: राग की चलन वक्र होने के कारण इसे वक्र-सम्पूर्ण जाति का राग कहा जाता है। तानों में वक्रता कम कर दी जाती है।
निषाद का वक्र और अल्प प्रयोग: इस राग में निषाद वक्र होने के साथ-साथ अल्प भी है।
न्यास के स्वर
इस राग में सा, गंधार (ग), और पंचम (प) मुख्य न्यास के स्वर हैं।
विशेष स्वर संगतियां
- सा, ग रे म ग, प ग रे सा
- ग रे म ग
- पप सां, रें सां धप म ग
- रे ग रे म ग, पऽ गरे ऽ सा
Raag Gaud Sarang Bandish
राग गौडसारंग बंदिश – त्रिताल (मध्यलय)
Gaudsarang Raag Bandish – स्थायी
Gaud Sarang Bandish – अंतरा
राग गौडसारंग तान (तीनताल )
सम से 8 मात्रा की तानें –
- सासा गरे मग पमे । धप मग परे सा- ।
- पप धनि सांनि धप । मग पप रेरे सा ।
- मैप धनि धप मेप । गरे मग परे सा
- गम पध मेप गम । गरे मग परे सा- ।
- पप सांसां रेंरें सांनि। धप मग रेसा निसा ।
हमारी टीम को आपकी मदद की आवश्यकता है! 🙏
हमारी वेबसाइट भारतीय शास्त्रीय संगीत को समर्पित है। दुर्भाग्य से, हमारी टीम के एक सदस्य को तुरंत सर्जरी की आवश्यकता है, जिसके लिए ₹83,000 की मदद चाहिए।
हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इस कठिन समय में हमें सहयोग दें। आपका छोटा-सा योगदान (सिर्फ ₹10-₹50-₹100-₹500) भी हमारे साथी के जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
आप कैसे मदद कर सकते हैं?
- Copy This UPI ID : Indianraag@ybl
- QR कोड: स्क्रीनशॉट लेकर UPI ऐप से पे करें।
- Email – Musicalsday@gmail.com OR support@indianraag.com
आपका समर्थन केवल हमारे साथी के लिए ही नहीं, बल्कि संगीत के प्रति हमारे समर्पण को भी बनाए रखने का जरिया है।
धन्यवाद!
How To Read Sargam Notes
कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:
- कोमल ग: ग(k) या ग
- कोमल रे: रे(k) या रे
- कोमल ध: ध(k) या ध
- कोमल नि: नि(k) या नि
नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।
तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:
- तीव्र म: म(t) या मे
स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।
तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।
मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।
- उदाहरण: .नि = मंद्र सप्तक नि
तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।
- उदाहरण: सां = तार सप्तक सा
नमस्कारम् 🙏🏻
राग गौड़ सारंग एक अद्वितीय राग है जो अपनी विशिष्टताओं और संगीतमय विशेषताओं के कारण श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। इसकी मधुर ध्वनि और वक्र स्वरूप इसे विशेष बनाते हैं। इस राग का अभ्यास और प्रस्तुति दोपहर के समय विशेष रूप से प्रभावी होती है।