Vishnu Digambar Paluskar
पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर – Pandit Vishnu Digambar Paluskar
स्व. पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का जन्म सन् 1872 की श्रावण पूर्णिमा को बेलगांव, कुरुंदवाड़ रियासत में हुआ। उनका परिवार ब्राह्मण था, पिता का नाम दिगम्बर गोपाल और माता का नाम गंगादेवी था। उनके पिता एक कुशल कीर्तनकार थे और उनका स्वर अत्यंत मधुर था। विष्णु जी का प्रारंभिक जीवन सामान्य था, लेकिन एक दुर्घटना में आतिशबाजी के कारण उनकी आँखों की रोशनी चली गई, जिससे उन्हें अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी। इसके बाद उन्होंने संगीत की शिक्षा आरंभ की और पं. बालकृष्ण बुआ के शिष्य बने। उनकी प्रतिभा ने रियासत के महाराजा को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने विष्णु जी को अपने संरक्षण में ले लिया।
संगीत के प्रति समर्पण
विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का जीवन एक प्रेरणादायक घटना से बदल गया। एक सार्वजनिक सभा में उनके गुरु, पं. बालकृष्ण बुआ को निमंत्रण नहीं मिला क्योंकि समाज में संगीतकारों को निम्न दृष्टि से देखा जाता था। यह घटना विष्णु जी के हृदय में गहराई से उतर गई, और उन्होंने संगीतकारों की दयनीय स्थिति को सुधारने का संकल्प लिया। उनका उद्देश्य संगीत को समाज में उच्च स्थान दिलाना और उसका प्रचार-प्रसार करना था।
संगीत यात्रा और प्रचार
सन् 1896 में, अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए, वे रियासत के सारे सुखों को त्यागकर निकल पड़े। उनके पास केवल एक लोटा और एक कंबल था। उन्होंने उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में भ्रमण किया और अपने मधुर गायन से संगीत के प्रति लोगों में श्रद्धा जाग्रत की। उन्होंने बड़ौदा, ग्वालियर, दिल्ली, लाहौर, काशी, प्रयाग आदि स्थानों पर अपने संगीत का प्रदर्शन किया और श्रोताओं के दिलों में संगीत के प्रति लगाव पैदा किया।
गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना
विष्णु दिगम्बर जी ने महसूस किया कि संगीत के प्रचार के लिए संस्थागत शिक्षा की आवश्यकता है। इसलिए, 5 मई 1901 को उन्होंने लाहौर में गांधर्व महाविद्यालय की स्थापना की। इस महाविद्यालय को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे जो भी धन अर्जित करते, उसे विद्यालय की उन्नति में लगा देते। लाहौर के बाद, उन्होंने बंबई और नासिक में भी संगीत विद्यालय खोले। हालांकि, धन की कमी के कारण ये विद्यालय बंद हो गए।
संगीत के प्रति साधना और समर्पण
पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग संगीत के प्रचार और प्रसार में बिताया। उन्होंने लगभग 50 संगीत की पुस्तकों की रचना की और कई कविताओं को स्वरबद्ध किया। उन्होंने वैदिक काल की आश्रम प्रणाली के आधार पर लगभग 100 शिष्यों का निर्माण किया, जिनमें पं. ओंकारनाथ ठाकुर, विनायक राव पटवर्धन, नारायण राव व्यास जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं। उनके शिष्यों ने उनके उद्देश्य को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अंतिम काल और संगीत सेवा
अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी पं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने संगीत साधना जारी रखी। सन् 1930 में उन्हें लकवा मार गया, और 21 अगस्त 1931 को उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया। हालांकि वे शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनका योगदान और संगीत की आत्मा आज भी हर उस घर में जीवित है, जहां संगीत का महत्व है।