Sargam Geet – सरगम गीत
सरगम गीत राग में स्वरों की रागबद्ध और तालबद्ध रचना को कहते हैं। इन गीतों में केवल स्वर होते हैं और किसी भी प्रकार की कविता या बोल नहीं होते। सरगम गीत विभिन्न तालों और रागों में संकलित होते हैं, जिससे विद्यार्थियों को राग और स्वरों के ज्ञान में सहायता मिलती है। सरगम गीत के अभ्यास से विद्यार्थियों को रागों की विशेषताओं और स्वरों की महत्ता को समझने में मदद मिलती है।
मदभेद – कई विद्वान सरगम गीत और स्वर मालिका को अलग – अलग परिभाषित करते है
स्वर मालिका
स्वर मालिका(Swarmalika) जिसे आम भाषा में ‘सरगम गीत’ भी कहा जाता है, राग में प्रयोग किये जाने वाले स्वरों की तालबद्ध रचना स्वर-मालिका कहलाती है। यह प्रत्येक राग में हो सकती है और मध्य लय में होती है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रारम्भिक विद्यार्थियों को स्वर और राग ज्ञान कराना है। इसको सरगम अथवा सुरावर्त भी कहते हैं। नीचे खमाज राग में सरगम की स्थाई दी जा रही है। इसे संगीत राग दर्शन से लिया गया है।
राग सीखने में स्वरमालिका की भूमिका
स्वरमालिका शुरुआती विद्यार्थियों को विभिन्न रागों और उनके स्वरों से परिचित कराने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। स्वरमालिका का अभ्यास करके, विद्यार्थी संगीत के स्केल, स्वर संरचना और ताल की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं। इसे “सरगम गीत” के रूप में भी जाना जाता है, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के अध्ययन के शुरुआती चरणों में बेहद महत्वपूर्ण है।
राग खमाज में स्वरमालिका का उदाहरण
नीचे राग खमाज में स्वरमालिका का एक उदाहरण दिया गया है, जो इस राग की संरचना और भाव को सिखाने में मदद करता है:
सां नि ध सां। नि ध म ग । म प ध म । ग – रे सा
सा सा ग म । प – ग म । नि ध सां नि । ध प मं ग
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महत्व
स्वरमालिका और सरगम गीत भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के मूलभूत तत्व हैं। ये विद्यार्थियों को रागों और स्वरों के अध्ययन के लिए एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जिससे उनकी संगीत समझ और प्रदर्शन क्षमता में वृद्धि होती है। स्वरमालिका का अभ्यास करके, विद्यार्थी संगीत के तकनीकी और भावनात्मक दोनों पहलुओं में मजबूत नींव बना सकते हैं।
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