इस पोस्ट में राग बहार की पूरी जानकारी दी गई है। इसमें बहार राग का परिचय, इसकी विशेषताएँ, और बहार राग की बंदिश (सरगम) शामिल हैं। इसके अलावा, राग बहार से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी दिए गए हैं, जो राग की संरचना और महत्व को स्पष्ट करते हैं। यह पोस्ट बहार राग के गुण, प्रदर्शन शैली, और संगीत में इसकी भूमिका को समझने में मदद करती है।
Raag Bahar Parichay
बहार राग की रचना काफी थाट से मानी जाती है। इसके आरोह में रे और अवरोह में ध स्वर वर्ज्य होने से इसकी जाति षाडव-षाडव मानी जाती है। इस राग में गन्धार कोमल तथा दोनों निषाद प्रयोग किये जाते हैं। वादी स्वर म और संवादी स्वर सा है। यह राग मध्य रात्रि में गाया-बजाया जाता है।
बहार राग – स्वर संरचना
- आरोह: सा, म प ग म, ध नि सां
- अवरोह: सां नि प, म प, ग म रे सा
- पकड़: सा, म प ग म, ध नि सां
राग बहार का परिचय
- ठाट: कल्याण
- जाति: षाडव-सम्पूर्ण
- वादी: म
- सम्वादी: सा
- गायन समय: वसंत ऋतु, विशेष रूप से रात का दूसरा प्रहर
राग बहार की विशेषताएँ
मध्य काल का राग: किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में इसका उल्लेख नहीं मिलता, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस राग की रचना मध्य काल में हुई है।
मिश्रण राग: यह वास्तव में तीन रागों बागेश्वरी, अड़ाना और मियाँ मल्हार के मिश्रण से बना है। स्वयं भातखंडे जी ने क्रमिक पुस्तक भाग 4 में बहार राग के लक्षण गीत के अन्तर्गत लिखा है, ‘बागेश्वरी, मल्हार सुम्मिलत सुर अड़ाना बीच चमकत’।
उत्तरांग प्रधान: यह राग उत्तरांग प्रधान है और इसकी चलन अधिकतर सप्तक के उत्तर अंग तथा तार सप्तक में होती है।
गायन-समय: यद्यपि इस राग का गायन-समय मध्य रात्रि है, तथापि बसंत ऋतु में इसे हर समय गाया-बजाया जाता है। बहार राग के गीतों में बसंत ऋतु का वर्णन मिलता है। इसे मौसमी राग भी कहते हैं।
वक्र स्वर: इसके आरोह में पंचम तथा अवरोह में गंधार स्वर वक्र हैं।
निषाद स्वर का प्रयोग: आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी अवरोह में शीघ्रता के साथ कुछ गायक कोमल नि का प्रयोग कर लेते हैं, जैसे- ग ऽ म ध ऽ न रें सां, इस प्रकार के प्रयोग से बागेश्वरी अंग स्पष्ट होता है।
प्रकृति: इस राग की प्रकृति चंचल है, अतः इसमें बड़ा ख्याल तथा मसीतखानी गतें सुनने में कम आती हैं।
न्यास के स्वर
सा, म और प।
समप्रकृति राग
मियाँ मल्हार।
Raag Bahar Bandish
राग बहार बंदिश – तीनताल मध्यलय
स्थायी
– नि – प | म प ग म | ध – – नि | सां – नि सां
ऽ कै ऽ सी | नि क सी ऽ | चाँ ऽ ऽ द | नी ऽ ऽ ऽ
० |३ |x |२
सां सां सां नि | – प म प | ग ग ग म | रे रे सा सा
श र द रा | ऽ त म द | मा ऽ त बि | क ल भा ई
० |३ |x |२
म म म म | प – ग म | – ध – नि | सां – धनि सां
पि यु पि यु | टे ऽ र त | ऽ भा ऽ मि | नी ऽ ऽऽ ऽ
० |३ |x |२
अंतरा
ग ग म – | नि ध नि नि | सां – नि नि | सां नि सां –
छि न आं ऽ | ग न छि न | जा ऽ त भ | व न में ऽ
० |३ |x |२
नि नि सां – | नि प म प | ग ग ग गम | रे – सा सा
छि न बै ऽ | ठ त छि न | बा ऽ ह रऽ | दौ ऽ र त
० |३ |x |२
सा सा सा म | म म नि प | ग म ध नि | सां – सां सां
क ल ना प | र त त र |फ त बि र | हा ऽ कु ल
० |३ |x |२
सां सां मं मं | रें – नि सां | नि ध – नि | सां – धनि सां
च म क त | जो ऽ दुः ख | भा ऽ ऽ मि | नी ऽ ऽऽ ऽ
० |३ |x |२
Bahar Raag Taan
सम से 8 मात्रा की तानें-
- निसा गम रेसा निसा । गम पम गम रेसा ।
- निसा गम पम गम । निप मप गम रेसा ।
- निसा गम धनि सांसां । निनि पम गम रेसा ।
- मम गम रेसा निनि । पम पम गम रेसा ।
- निध निसां निप मप । गम पम गम रेसा ।
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How To Read Sargam Notes
कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:
- कोमल ग: ग(k) या ग
- कोमल रे: रे(k) या रे
- कोमल ध: ध(k) या ध
- कोमल नि: नि(k) या नि
नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।
तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:
- तीव्र म: म(t) या मे
स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।
तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।
मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।
- उदाहरण: .नि = मंद्र सप्तक नि
तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।
- उदाहरण: सां = तार सप्तक सा
यहाँ पर राग बहार से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं:
1. राग बहार किस थाट से उत्पन्न माना गया है?
राग बहार को काफी थाट से उत्पन्न माना जाता है। काफी थाट के अंतर्गत कई अन्य राग भी आते हैं, लेकिन बहार अपनी विशेषता और स्वर संरचना के कारण एक अद्वितीय राग है।
2. राग बहार की रचना किस काल में हुई है?
राग बहार की रचना मध्य काल में मानी जाती है। यह एक मिश्रित राग है और इसकी उत्पत्ति प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलती, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इसका विकास मध्यकालीन संगीत परंपरा में हुआ है।
3. राग बहार का गायन समय क्या है?
राग बहार का गायन समय मध्य रात्रि है। हालांकि, इसे वसंत ऋतु में दिन के किसी भी समय गाया जा सकता है। इस राग के गीतों में वसंत ऋतु का वर्णन मिलता है, इसलिए इसे मौसमी राग भी कहा जाता है।
4. राग बहार की जाति क्या है?
राग बहार की जाति षाडव-षाडव है। इसका मतलब है कि इस राग में आरोह और अवरोह दोनों में छह-छह स्वर प्रयोग होते हैं। आरोह में रे और अवरोह में ध स्वर वर्ज्य होते हैं।
5. राग बहार किस अंग का प्रधान राग है?
राग बहार उत्तरांग प्रधान राग है। इसकी चलन अधिकतर सप्तक के उत्तरांग और तार सप्तक में होती है। इस राग की प्रकृति चंचल होती है, जिसके कारण यह राग बड़े ख्याल तथा मसीतखानी गतों में कम सुनाई देता है।
6. राग बहार से मिलने-जुलते राग कौन से हैं?
राग बहार से मिलने-जुलते राग मियाँ मल्हार और बागेश्वरी हैं। ये राग भी काफी थाट से संबंधित होते हैं और इनमें कुछ समान स्वरों का प्रयोग होता है, जिससे इन रागों में एक विशेष सामंजस्य स्थापित होता है।
7. राग बहार के न्यास के स्वर कौन-कौन से हैं?
राग बहार के न्यास के स्वर निम्नलिखित हैं:
- सा, म & प
ये स्वर राग के प्रदर्शन के दौरान महत्वपूर्ण स्थिरता प्रदान करते हैं और संगीतकार द्वारा विशेष ध्यान दिए जाते हैं।
8. राग बहार का संक्षिप्त परिचय
राग बहार की उत्पत्ति काफी थाट से मानी जाती है। इसके आरोह में रे और अवरोह में ध स्वर वर्ज्य होने से इसकी जाति षाडव-षाडव है। इस राग में गंधार कोमल और दोनों निषाद स्वर प्रयोग होते हैं। वादी स्वर म और संवादी स्वर सा है। राग की विशेषता यह है कि इसे मध्य रात्रि में गाया जाता है, और बसंत ऋतु में किसी भी समय इसका प्रदर्शन किया जा सकता है।
9. राग बहार का आरोह, अवरोह और पकड़
- आरोह: सा, म प ग म, ध नि सां
- अवरोह: सां नि प, म प, ग म रे सा
- पकड़: सा, म प ग म, ध नि सां
10. राग बहार के वादी और संवादी स्वर
- वादी स्वर: म
- संवादी स्वर: सा
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