नाद: परिभाषा, स्वरूप और उसकी विशेषताएं
नाद की परिभाषा: नाद, भारतीय शास्त्रीय संगीत का मूल आधार है। यह एक प्रकार की संगीतोपयोगी ध्वनि है जो कम्पन द्वारा उत्पन्न होती है। जब किसी वाद्य यंत्र के तारों, जैसे तानपुरे या सितार के तार को छेड़ा जाता है, तो यह कम्पन करने लगता है, और इसी कम्पन से ध्वनि या नाद का निर्माण होता है। इस ध्वनि की कुछ विशेषताएं होती हैं जो इसे संगीत में उपयोगी और आनंददायक बनाती हैं।
नाद के प्रकार
नाद को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया गया है:
- आहत नाद (Struck Sound)
- अनहत नाद (Unstruck Sound)
1. आहत नाद (Struck Sound)
- परिभाषा: आहत नाद वह ध्वनि है जो किसी वस्तु के किसी अन्य वस्तु से टकराने पर उत्पन्न होती है। यह एक बाह्य कम्पन या आघात के कारण उत्पन्न होती है। जब किसी वाद्य के तार या सतह को हाथ, मिजराब (तार खींचने का औजार), लकड़ी या किसी अन्य वस्तु से छेड़ा जाता है, तो कम्पन के कारण जो ध्वनि उत्पन्न होती है, उसे आहत नाद कहते हैं।
- उदाहरण: सितार, तानपुरा, तबला, हारमोनियम, और पखावज आदि से उत्पन्न ध्वनियाँ आहत नाद के उदाहरण हैं। इन वाद्यों को बजाने के लिए उन्हें किसी प्रकार से आघात करने या छेड़ने की आवश्यकता होती है, जिससे कम्पन होता है और ध्वनि निकलती है। आहत नाद सुनने और अनुभव करने योग्य होता है और इस प्रकार के नाद का संगीत में प्रमुख उपयोग होता है।
- विशेषता: आहत नाद में ध्वनि का स्वरूप, तीव्रता और गुण उस वस्तु पर निर्भर करता है, जिससे टकराकर ध्वनि उत्पन्न हो रही है। तार, चमड़े, या लकड़ी जैसी विभिन्न सामग्रियों पर आधारित वाद्य से उत्पन्न आहत नाद में गुणात्मक भिन्नता होती है।
2. अनहत नाद (Unstruck Sound)
- परिभाषा: अनहत नाद वह ध्वनि है जो किसी बाहरी आघात के बिना, स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है। इसे ‘आन्तरिक ध्वनि’ या ‘अलौकिक ध्वनि’ भी कहा जाता है। यह ध्वनि हमारे भीतर, विशेषकर ध्यान और साधना में अनुभव की जाती है। शास्त्रों में इसे ‘सर्वव्यापी नाद’ के रूप में माना गया है जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में निहित है।
- उदाहरण: योग और ध्यान में प्राप्त की जाने वाली ध्वनियाँ, जैसे ‘ॐ’ का नाद, अनहत नाद के उदाहरण माने जाते हैं। यह शारीरिक क्रिया के बजाय मानसिक अनुभव का विषय होता है, और इसकी अनुभूति गहरी साधना से होती है।
- विशेषता: अनहत नाद को किसी बाहरी वस्तु या आघात की आवश्यकता नहीं होती। यह नाद सम्पूर्णता का प्रतीक है और कहा जाता है कि यह हमारी आत्मा के गहरे स्तर पर मौजूद है। इसे ध्यान और साधना में अनुभव किया जाता है, और यह नाद शांति और आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है।
नाद की मुख्य तीन विशेषताएँ हैं:
- ऊंचाई-निचाई (Pitch)
- नाद का छोटा-बड़ापन (Loudness)
- नाद की जाति अथवा गुण (Timbre)
1. नाद की ऊंचाई-निचाई
- परिभाषा: नाद की ऊंचाई-निचाई का अर्थ उस ध्वनि की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) से होता है, यानी ध्वनि कितनी “ऊँची” या “नीची” सुनाई देती है। यह नाद की तीव्रता को दर्शाती है।
- कैसे होती है: गाते या बजाते समय यह अनुभव होता है कि स्वरों में ऊंचाई-निचाई होती है। जैसे संगीत में ‘सा’, ‘रे’, ‘ग’, ‘म’, आदि बारह स्वर होते हैं। इन स्वरों में ‘सा’ से ऊंचा ‘रे’, और ‘रे’ से ऊंचा ‘ग’ होता है। इसका अर्थ यह है कि ‘रे’ की कम्पन संख्या (आंदोलन संख्या) ‘सा’ से अधिक है और ‘ग’ की ‘रे’ से अधिक। आवृत्ति अधिक होने पर स्वर ऊंचा सुनाई देता है और कम होने पर नीचा।
- वैज्ञानिक आधार: नाद की ऊंचाई सीधे उस ध्वनि की आवृत्ति से संबंधित होती है। उच्च आवृत्ति वाले स्वर ऊंचे होते हैं और निम्न आवृत्ति वाले स्वर नीचे। यह ऊंचाई-निचाई की विशेषता विभिन्न स्वरों को एक-दूसरे से अलग और विशिष्ट बनाती है, जिससे संगीत में विविधता और गहराई आती है।
उदाहरण:
- जब किसी सितार के तार को तेज़ी से छेड़ा जाता है, तो ऊंचाई बढ़ती है और स्वर तीव्र तथा ऊँचा सुनाई देता है। इसके विपरीत, यदि तार को धीमे से छेड़ा जाए तो उत्पन्न स्वर नीचा होगा।
2. नाद का छोटा-बड़ापन
- परिभाषा: नाद का छोटा-बड़ापन उस ध्वनि की तीव्रता को दर्शाता है यानी ध्वनि कितनी दूर तक और किस हद तक सुनाई देती है। यह तार के आंदोलन की चौड़ाई पर निर्भर करता है।
- कैसे होती है: जब वाद्य यंत्र के तार को धीरे से छेड़ा जाता है, तो उत्पन्न नाद धीमा होता है और केवल थोड़ी दूरी तक ही सुनाई देता है। इसे “छोटा नाद” कहते हैं। इसके विपरीत, जब तार को ज़ोर से छेड़ा जाता है, तो उत्पन्न नाद तेज़ होता है और अधिक दूरी तक सुनाई देता है। इसे “बड़ा नाद” कहा जाता है।
- वैज्ञानिक आधार: किसी वाद्य के तार के कम्पन की चौड़ाई (Amplitude) जितनी अधिक होगी, उतना ही बड़ा नाद उत्पन्न होगा। चौड़ाई अधिक होने पर, तार अधिक दूरी तक ऊपर-नीचे कम्पन करता है जिससे ध्वनि तेज़ और स्पष्ट सुनाई देती है। इसके विपरीत, जब कम्पन की चौड़ाई कम होती है, तो उत्पन्न ध्वनि धीमी और सीमित दूरी तक ही सुनाई देती है।
उदाहरण:
- तानपुरा या सितार के तार को धीरे से छेड़ने पर तार की चौड़ाई (कम्पन) कम होती है जिससे छोटा नाद उत्पन्न होता है। यदि तार को जोर से छेड़ा जाए तो तार की चौड़ाई बढ़ती है और बड़ा नाद उत्पन्न होता है।
3. नाद की जाति अथवा गुण
- परिभाषा: नाद की जाति अथवा गुण वह विशेषता है जो हर वाद्य के स्वर को अन्य वाद्यों के स्वरों से अलग बनाती है। इसे टिम्बर (Timbre) या स्वर गुण भी कहते हैं।
- कैसे होती है: विभिन्न वाद्यों से उत्पन्न होने वाली ध्वनि का स्वरूप एक दूसरे से भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, सितार की ध्वनि बेला (Violin) से और बेला की ध्वनि हारमोनियम से अलग होती है। यह भिन्नता हर वाद्य के सहायक नादों की संख्या, क्रम और प्राबल्य पर निर्भर करती है।
- वैज्ञानिक आधार: वैज्ञानिकों के अनुसार, कोई भी नाद अकेला उत्पन्न नहीं होता, बल्कि उसके साथ कुछ अन्य सहायक नाद भी उत्पन्न होते हैं। ये सहायक नाद (Overtones) मुख्य नाद के साथ जुड़े रहते हैं और नाद की जाति या गुण को निर्धारित करते हैं। हर वाद्य में उत्पन्न होने वाले सहायक नादों की संख्या, उनका क्रम और प्राबल्य (प्रमुखता) एक-दूसरे से भिन्न होता है। इसी कारण से, हमें हर वाद्य की ध्वनि अलग सुनाई देती है।
उदाहरण:
- जब एक सितार का स्वर सुना जाता है, तो उसके साथ कुछ अन्य सहायक नाद भी सुनाई देते हैं जो सितार की ध्वनि को विशिष्ट बनाते हैं। इन्हीं सहायक नादों की उपस्थिति के कारण हम बिना देखे ही यह पहचान सकते हैं कि वह ध्वनि किस वाद्य की है। यही विशेषता हारमोनियम, सरोद, या बेला जैसे अन्य वाद्यों में भी होती है, जिससे उनकी ध्वनि एक-दूसरे से अलग सुनाई देती है।
नाद
नाद की ये तीनों विशेषताएं – ऊंचाई-निचाई, छोटा-बड़ापन और जाति अथवा गुण – मिलकर किसी वाद्य की ध्वनि को अद्वितीय और प्रभावी बनाती हैं। इसी के आधार पर हम संगीत में विभिन्न स्वरों और ध्वनियों का अनुभव करते हैं।
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