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नाद क्या है: नाद के प्रकार और नाद की विशेषता है

नाद: परिभाषा, स्वरूप और उसकी विशेषताएं

नाद की परिभाषा: नाद, भारतीय शास्त्रीय संगीत का मूल आधार है। यह एक प्रकार की संगीतोपयोगी ध्वनि है जो कम्पन द्वारा उत्पन्न होती है। जब किसी वाद्य यंत्र के तारों, जैसे तानपुरे या सितार के तार को छेड़ा जाता है, तो यह कम्पन करने लगता है, और इसी कम्पन से ध्वनि या नाद का निर्माण होता है। इस ध्वनि की कुछ विशेषताएं होती हैं जो इसे संगीत में उपयोगी और आनंददायक बनाती हैं।

नाद के प्रकार

नाद को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया गया है:

  1. आहत नाद (Struck Sound)
  2. अनहत नाद (Unstruck Sound)

1. आहत नाद (Struck Sound)

2. अनहत नाद (Unstruck Sound)

नाद की मुख्य तीन विशेषताएँ हैं:

  1. ऊंचाई-निचाई (Pitch)
  2. नाद का छोटा-बड़ापन (Loudness)
  3. नाद की जाति अथवा गुण (Timbre)

1. नाद की ऊंचाई-निचाई

उदाहरण:

2. नाद का छोटा-बड़ापन

उदाहरण:

3. नाद की जाति अथवा गुण

  • परिभाषा: नाद की जाति अथवा गुण वह विशेषता है जो हर वाद्य के स्वर को अन्य वाद्यों के स्वरों से अलग बनाती है। इसे टिम्बर (Timbre) या स्वर गुण भी कहते हैं।
  • कैसे होती है: विभिन्न वाद्यों से उत्पन्न होने वाली ध्वनि का स्वरूप एक दूसरे से भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, सितार की ध्वनि बेला (Violin) से और बेला की ध्वनि हारमोनियम से अलग होती है। यह भिन्नता हर वाद्य के सहायक नादों की संख्या, क्रम और प्राबल्य पर निर्भर करती है।
  • वैज्ञानिक आधार: वैज्ञानिकों के अनुसार, कोई भी नाद अकेला उत्पन्न नहीं होता, बल्कि उसके साथ कुछ अन्य सहायक नाद भी उत्पन्न होते हैं। ये सहायक नाद (Overtones) मुख्य नाद के साथ जुड़े रहते हैं और नाद की जाति या गुण को निर्धारित करते हैं। हर वाद्य में उत्पन्न होने वाले सहायक नादों की संख्या, उनका क्रम और प्राबल्य (प्रमुखता) एक-दूसरे से भिन्न होता है। इसी कारण से, हमें हर वाद्य की ध्वनि अलग सुनाई देती है।

उदाहरण:

  • जब एक सितार का स्वर सुना जाता है, तो उसके साथ कुछ अन्य सहायक नाद भी सुनाई देते हैं जो सितार की ध्वनि को विशिष्ट बनाते हैं। इन्हीं सहायक नादों की उपस्थिति के कारण हम बिना देखे ही यह पहचान सकते हैं कि वह ध्वनि किस वाद्य की है। यही विशेषता हारमोनियम, सरोद, या बेला जैसे अन्य वाद्यों में भी होती है, जिससे उनकी ध्वनि एक-दूसरे से अलग सुनाई देती है।

नाद

नाद की ये तीनों विशेषताएं – ऊंचाई-निचाई, छोटा-बड़ापन और जाति अथवा गुण – मिलकर किसी वाद्य की ध्वनि को अद्वितीय और प्रभावी बनाती हैं। इसी के आधार पर हम संगीत में विभिन्न स्वरों और ध्वनियों का अनुभव करते हैं।

 

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