Senior Diploma – Vocal
प्रयाग संगीत समिति, इलाहबाद का पाठ्यक्रम
Vocal Junior Diploma 4th Year Syllabus In Hindi
चतुर्थ वर्ष (Senior Diploma)
- क्रियात्मक परीक्षा १०० अंकों कि तथा शास्त्र का एक प्रश्न-पत्र ५० अंकों का।
- पिछले वर्षों सम्पूर्ण पाठ्यक्रम भी इसमें सम्मिलित है।
क्रियात्मक (Practical)
1. स्वर ज्ञान का विशेष अभ्यास, कठिन स्वर-समूहों की पहचान.
2. तानपुरा और तबला मिलाने की विशेष क्षमता.
3. अंकों या स्वरों के सहारे ताली देकर विभिन्न लयों का प्रदर्शन – द्विगुण (एक मात्रा में दो मात्रा), तिगुन (१ में ३) चौगुन, आड़ (२ में ३) और आड़ की उलटी (३ में २ मात्रा बोलना), (४ में ३) तथा ४ में ५ मात्राओं का प्रदर्शन.
4. कठिन और सुन्दर आलाप और तानों का अभ्यास.
5. देशकार, शंकरा, जयजयवंती, कामोद, मारवा, मुल्तानी, सोहनी, बहार, पूर्वी. इन रागों में १-१ विलंबित और द्रुत ख्याल, आलाप, तान, बोलतान सहित.
6. उक्त रागों में से किन्हीं दो में १-१ ध्रुपद तथा किन्हीं दो में १-१ धमार केवल ठाह, द्विगुण, तिगुन, और चौगुन सहित तथा एक तराना.
7. ख्याल की गायकी में विशेष प्रवीणता.
8. टप्पा और ठुमरी के ठेकों का साधारण ज्ञान. जत और आड़ा चारताल को पूर्ण रूप से बोलने का अभ्यास.
9. स्वर-समूहों द्वारा राग पहचान.
10. गाकर रागों में समता-विभिन्नता दिखाना.
शास्त्र (Theory)
1. गीत के प्रकार – टप्पा, ठुमरी, तराना, तिरवट, चतुरंग, भजन, गीत, गजल आदि गीत के प्रकारों का विस्तृत वर्णन, राग-रागिनी पद्धति आधुनिक आलाप-गायन की विधि, तान के विविध प्रकारों का वर्णन, विवादी स्वर का प्रयोग, निबद्ध गान के प्राचीन प्रकार (प्रबंध, वास्तु आदि) धातु, अनिबद्ध गान.
2. बाईस श्रुतियों का स्वरों में विभाजन (आधुनिक और प्राचीन मत), खींचे हुए तार की लम्बाई का नाद के ऊँचे-निचेपन से सम्बन्ध.
3. छायालग और संकीर्ण राग, परमेल प्रवेशक राग, रागों का समय-चक्र, दक्षिणी और उत्तरी हिन्दुस्तानी पद्धतियों के स्वर की तुलना, रागों का समय-चक्र निश्चित करने में अध्वदर्शक स्वर, वादी-संवादी और पूर्वांग-उत्तरांग का महत्व
4. उत्तर भारतीय सप्तक से ३२ थाटों की रचना, आधुनिक थाटों के प्राचीन नाम, तिरोभाव-आविर्भाव, अल्पत्व-बहुत्व.
5. रागों का सूक्ष्म तुलनात्मक अध्ययन, राग-पहचान
6. विष्णु दिगंबर और भातखंडे दोनों स्वर्लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन. गीतों को दोनों पद्धति में लिखने का अभ्यास. धमार, ध्रुपद को दून तिगुन व चौगुन स्वरलिपि में लिखना.
7. भरत, अहोबल, व्यंकटमखि तथा मानसिंह का जीवन-चरित्र और उनके संगीत कार्यों का विवरण.
8. पाठ्यक्रम के सभी तालों की दुगुन, तिगुन, चौगुन प्रारंभ करने का स्थान गणित द्वारा निकालने की विधि. दुगुन, तिगुन तथा चौगुन के अतिरिक्त अन्य विभिन्न लयकारियों को ताल-लिपि में लिखने का अभ्यास