Taal Parichay – ताल की परिभाषा और ताल का महत्व – तबला के प्रमुख ताल

ताल - Taal Parichay
ताल - Taal Parichay

“भारतीय संगीत में taal के महत्व को जानें और ताल का अर्थ समझें। जानें what is taal और taal in music के बारे में। Music taal और इसके लयात्मक संरचना में भूमिका को जानें। Tala in music, इसके रूप, और tala in India के बारे में जानें, जो tala Indian music परंपराओं को समृद्ध करता है।”

 

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Taal Kise Kahate Hain

ताल किसे कहते हैं? – तबला और शास्त्रीय संगीत में ‘ताल’ का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह संगीत की लय और गति को निर्धारित करता है। ताल एक संरचना होती है जो किसी रचना के समय के विभाजन को दर्शाती है। आइए ताल का परिचय और उसके महत्व को विस्तार से समझते हैं।

Taal Parichay – ताल परिचय

ताल का अर्थ है “समय का माप”। भारतीय शास्त्रीय संगीत में, ताल को मुख्य रूप से लय की गणना और उसकी प्रस्तुति के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक ताल का एक विशिष्ट मात्रा (बीट्स) का समूह होता है जिसे ‘मात्रा’ कहते हैं। विभिन्न मात्राओं के समूह से एक ताल बनती है। प्रत्येक ताल की अपनी एक विशेष लयबद्ध संरचना होती है, जिसे बोलों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है।

ताल किसे कहते हैं ?

ताल की परिभाषा

संगीत में समय नापने के साधन को ताल कहते हैं।

यह परिभाषा संगीत की लय और समय के संरचित माप को दर्शाती है। ताल संगीत की लयबद्धता को स्थापित करने का माध्यम है, जो संगीतकारों को अपनी रचनाओं को सही ढंग से प्रस्तुत करने में सहायता करता है।

प्राचीन ग्रंथों में ताल की परिभाषा

संगीत रत्नाकर के अनुसार

“ताल वह है जिसमें नृत्य, वाद्य एवं गीत प्रतिष्ठित रहते हैं।”

संगीत रत्नाकर, जो एक प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत ग्रंथ है, के अनुसार, ताल वह साधन है जिसमें नृत्य, वाद्य, और गीत को व्यवस्थित किया जाता है। ‘प्रतिष्ठा’ का अर्थ है संगीत के इन तीनों अंगों को एक संरचित रूप में स्थिरता प्रदान करना। ताल के माध्यम से नृत्य, वाद्य और गायन को संतुलित और संगठित किया जाता है।

भरतमुनि के अनुसार

“संगीत में काल मापने के साधन को ‘ताल’ कहते हैं, जिस प्रकार भाषा में व्याकरण की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार संगीत का मुख्य पहलू ताल है।”

भरतमुनि, जो ‘नाट्य शास्त्र’ के रचयिता हैं, के अनुसार, संगीत में समय या काल को मापने के लिए ताल का प्रयोग होता है। जिस प्रकार भाषा में व्याकरण आवश्यक होता है, उसी प्रकार संगीत की रचना और उसकी प्रस्तुति के लिए ताल आवश्यक होता है। ताल संगीत की लयबद्ध संरचना को व्यवस्थित करता है और संगीत की धारा को सुचारू रूप से प्रस्तुत करने में मदद करता है।

ताल के कुछ प्रमुख घटक हैं:
  1. मात्रा (Beats): ताल में जो लयबद्ध समय का सबसे छोटा हिस्सा होता है उसे मात्रा कहते हैं। जैसे – त्रिताल में 16 मात्राएँ होती हैं।

  2. विभाग (Sections): ताल को कई हिस्सों में बाँटा जाता है, जिन्हें विभाग कहते हैं।

  3. सम (Sama): ताल का पहला मात्रा ‘सम’ कहलाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण मात्रा होती है और इसे विशेष रूप से चिह्नित किया जाता है।

  4. खाली (Khali): यह एक मात्रा होती है जिसे बजाते समय ताली नहीं बजाई जाती, बल्कि उसे खाली छोड़ा जाता है।

  5. ताली (Tali): जब एक विशेष मात्रा पर ताली बजाई जाती है तो उसे ताली कहते हैं।

  6. बोल (Bol): तबला वाद्य यंत्र पर ताल को व्यक्त करने के लिए बोले जाने वाले शब्दों को बोल कहते हैं।

ताल का महत्व

  1. लय की संरचना: ताल संगीत की लय और गति को नियंत्रित करती है। यह कलाकार को सही समय पर सही स्वर और लय के साथ प्रदर्शन करने में मदद करती है।

  2. संगीत की प्रस्तुति: ताल के माध्यम से संगीत की प्रस्तुति अधिक प्रभावशाली और व्यवस्थित होती है। यह गायन, वादन, और नृत्य में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होती है।

  3. रचना की पहचान: विभिन्न रागों और बंदिशों की पहचान उनके ताल से होती है। जैसे, ध्रुपद गायन में ‘चौताल’ और खयाल गायन में ‘त्रिताल’ प्रमुख होते हैं।

  4. सृजनात्मकता: ताल की विभिन्न जटिलताएँ कलाकार को अपनी रचनात्मकता प्रदर्शित करने का अवसर देती हैं। विभिन्न तालों का संयोजन और उनका प्रयोग संगीत को नवीनता प्रदान करता है।

  5. श्रोता का आकर्षण: ताल श्रोता को संगीत में लीन करने का एक प्रमुख साधन होती है। जब ताल के साथ संगीत का प्रवाह होता है, तो यह श्रोताओं को संगीत में गहराई से जुड़ने में मदद करती है।

तबला के प्रमुख ताल

तबला और ताल का संबंध भारतीय शास्त्रीय संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण है। तबला एक प्रमुख ताल वाद्य यंत्र है, जिसका उपयोग ताल की लय और स्वर को प्रकट करने के लिए किया जाता है। यह दोनों तत्व संगीत की संरचना और प्रदर्शन में एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

भारतीय शास्त्रीय संगीत में कई प्रकार की तालें होती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख तालें हैं:

  1. त्रिताल: 16 मात्राओं की ताल है। इसका वादन ‘धा धिन धिन धा, ता तिन तिन ता, ता धिन धिन धा, धा तिन तिन ता’ बोलों के माध्यम से होता है

  2. झपताल: 10 मात्राओं की ताल है।

  3. एकताल: 12 मात्राओं की ताल है।

  4. रूपक ताल: 7 मात्राओं की ताल है।

  5. केहरवा ताल: 8 मात्राओं की ताल है।

इन तालों का प्रयोग विभिन्न संगीत शैलियों में किया जाता है और यह शास्त्रीय संगीत की आत्मा मानी जाती है। ताल के बिना संगीत की कल्पना करना कठिन है, क्योंकि यह संगीत की धारा को दिशा देने का कार्य करती है।

हिंदुस्तानी संगीत में ताल

हिंदुस्तानी संगीत में कई प्रकार की तालें होती हैं, जो मुख्यतः उत्तर भारत में प्रचलित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  1. दादरा ताल: 6 मात्राओं की ताल, जिसे हल्के शास्त्रीय संगीत और ठुमरी में प्रयोग किया जाता है। इसका वादन ‘धा धी ना, धा तू ना’ बोलों से होता है।

  2. झूमरा ताल: 14 मात्राओं की ताल, जो ध्रुपद और खयाल गायन में प्रयोग की जाती है।

  3. सूलताल: 10 मात्राओं की ताल, जो ध्रुपद में लोकप्रिय है।

कर्णाटक संगीत में ताल

कर्णाटक संगीत, जो मुख्यतः दक्षिण भारत में प्रचलित है, में भी कई प्रकार की तालें होती हैं। इनमें कुछ प्रमुख हैं:

  1. आदि ताल: 8 मात्राओं की ताल, जो सबसे अधिक प्रयोग में आती है।

  2. रूपक ताल: 6 मात्राओं की ताल, जो सरल और मधुर होती है।

  3. मिश्र चापू ताल: 7 मात्राओं की ताल, जिसका प्रयोग विशिष्ट रचनाओं में किया जाता है।

ताल का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

भारतीय समाज में संगीत और नृत्य का सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है, और ताल उसका एक अभिन्न हिस्सा है। त्योहारों, पूजा-पाठ, और सामाजिक आयोजनों में ताल आधारित संगीत और नृत्य का प्रदर्शन आम है। यह समाज को जोड़ने और विभिन्न संस्कृतियों को एकजुट करने में सहायता करता है।

निष्कर्ष

ताल भारतीय संगीत की आत्मा है। यह न केवल संगीत की संरचना और लय को परिभाषित करता है, बल्कि संगीत के माध्यम से भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने में भी सहायक होता है। ताल का सही ज्ञान और उसका अभ्यास संगीतकारों के लिए आवश्यक है, जिससे वे अपने संगीत में नवीनता और परिपूर्णता ला सकें। ताल के विभिन्न प्रकार, उनका ऐतिहासिक विकास, और उनका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व हमें भारतीय संगीत की गहराई और उसकी विविधता को समझने में मदद करता है।

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