(स्वामी हरिदास) Swami haridash jivan parichay
- स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय – “भक्त चरितामृत” के अनुसार स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1537 के भादो मास में (सन 1490) जन्मआष्ट्मी को हुआ, जो सारस्वत ब्राम्हण थे |ऐसा माना जाता है जोकि एक सारस्वत ब्राह्मण थे। इनके पिता आशुधीर तथा माता गंगादेवी बड़े ही धार्मिक और साधु संतो के भक्त थे।
यह प्रसिद्ध है कि स्वामी हरिदास अपनी कुटिया छोड़कर कही नहीं जाते थे। बादशाह अकबर, मिया तानसेन से प्रतिदिन स्वामी हरिदास की प्रशंसा सुना करता था, इसी कारण अकबर के मन में हरिदास जी का गायन सुनने की प्रबल इच्छा जागृत हुई।वे तानसेन के साथ वृंदावन गए और स्वामी जी की कुटिया के निकट एक झाड़ी में छिपकर बैठ गए। स्वामी जी को गायन के लिए तानसेन एक ध्रुपद जानबूझ कर अशुद्ध गाने लगे, स्वामी जी ने आश्चर्य में आकर तानसेन को डांटा और उसका शुद्ध गायन तानसेन को सुनाया, तब बाहर झाड़ी में छिपे अकबर बादशाह आत्मविभोर हो गए।
गायन सुनाने के बाद जब स्वामी जी को यह ज्ञात हुआ की अकबर को उनका गायन सुनाने के लिए ही तानसेन ने यह उक्ति निकली थी तो उन्होंने कहा कि तुमने छल से मेरा गायन अकबर को सुनवाया है, यह बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है खैर जाओ अब बादशाह को अंदर बुला लाओ कहते है की अकबर उनके गायन से इतना भाव विभोर हो गया था की उसने स्वामी जी के चरण पकड़ लिए और अपना एक बहुमूल्य हार उनके चरणों में रख दिया लेकिन स्वामी जी ने आभार प्रदर्शित करते हुए वह हार वापस लौटा दिया।
- स्वामी हरिदास की मृत्यु कब हुई – स्वामी हरिदास जी की मृत्यु संवत 1664 में हुई ऐसा माना जाता है। वृंदावन में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को प्रतिवर्ष हरिदास जयंती मनाई जाती है।
- स्वामी हरिदास के शिष्यों का नाम – स्वामी हरिदास जी के मुख्य शिष्य तानसेन, बैजूर बावरा, रामदास दिवाकर तथा राजा सौरसेन थे।
स्वामी हरिदास जी गायन के अतिरिक्त वादन और नृत्य में भी परांगत थे। उत्तर भारत में जो कुछ भी संगीत मिलता है वह स्वामी हरिदास जी की ही देन है।