राग पीलू – Raag Pilu Parichay Bandish & Taan

पीलू राग – Pilu Raag

इस पोस्ट में, हम राग पीलू का परिचय (Raag Pilu Parichay) प्रस्तुत करते हैं, जिसमें Pilu Raag Notes, Raag Pilu Taan, और एक आकर्षक राग पीलू बंदिश (Raag Pilu Bandish) “पिया बिन जिया मोरा” के बारे में भी जानकारी मिलेगी, जो नोटेशन के साथ पूरी होगी।

Raag Pilu Parichay 

राग पीलू परिचय – Raag Pilu

Pilu Raag – राग पीलू की उत्पत्ति काफी थाट से मानी गई है। इसके आरोह में रे और स्वर वर्जित होते हैं, जबकि अवरोह में सभी स्वरों का प्रयोग होता है। इस वजह से इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है। राग पीलू का वादी स्वर गंधार (ग) और संवादी स्वर निषाद (नि) है। गायन का समय दिन का तीसरा प्रहर है। इस राग में रिषभ, गंधार, धैवत, और निषाद स्वरों के दोनों रूपों (शुद्ध और कोमल) का प्रयोग किया जाता है।

 
Raag Pilu Aaroh Avroh
  • आरोह– .नि सा ग म प नि सां।
  • अवरोह– सां नि ध प, ग म प, गS रे सा।
  • पकड़ – .नि सा – रे सा,  .नि .प .म .प .नि सा।.
राग पीलू परिचय – Raag Pilu Parichay
  • थाट – काफी थाट
  • वादी स्वर –
  • सम्वादी स्वर – नि
  • वर्जित स्वर – रे ध
  • जाति – ओडव- सम्पूर्ण
  • गायन समय – दिन का तीसरा प्रहर

राग पीलू की विशेषताएँ

  1. संकीर्ण जाति का राग: राग पीलू(Raag Pilu) में कई अन्य रागों की छाया देखी जा सकती है, जिससे इसे संकीर्ण जाति का राग कहा गया है। यह राग विविधता में समृद्ध है और इसकी विशेष ध्वनि में अन्य रागों के सुर सुनाई दे सकते हैं।

  2. श्रृंगार और चंचलता: पीलू राग(Raag Pilu) चंचल और श्रृंगारिक प्रकृति का राग है, जो इसे ठुमरी, टप्पा, और भजन में अत्यधिक लोकप्रिय बनाता है। फिल्मों में भी इस राग का बहुत प्रयोग किया गया है। हालांकि, विलम्बित ख्याल और ध्रुपद गायन में इसका प्रचलन कम है।

  3. पूर्वांग प्रधान राग: राग पीलू(Raag Pilu) पूर्वांग प्रधान है। इसमें पूर्वांग के स्वर इतने प्रमुख होते हैं कि संगीतज्ञ मध्यम को षड्ज मानकर गाते-बजाते हैं, जिससे मंद्र सप्तक के स्वरों में निर्वाह सरल हो जाता है।

  4. वक्र-सम्पूर्ण आरोह: हालांकि इसे औडव-सम्पूर्ण जाति का राग कहा गया है, इसका आरोह वक्र-सम्पूर्ण है। आरोह में स्वर सारेगमपधनिसां सीधा प्रयोग नहीं करते, बल्कि वक्र तरीके से स्वर का प्रयोग करते हैं।

  5. स्वर प्रयोग की लचीलेपन: सामान्यतः आरोह में शुद्ध स्वर और अवरोह में कोमल स्वर का प्रयोग होता है। परंतु, राग की सुंदरता को बढ़ाने के लिए कभी-कभी इसके विपरीत आरोह में कोमल स्वर का भी प्रयोग होता है, जैसे- रे ऽ रे सा .नि . .प, . .नि सा।

  6. सर्वकालिक राग: राग पीलू(Raag Pilu) का गायन समय दिन का तीसरा प्रहर माना गया है, लेकिन इसे किसी भी समय गाया जा सकता है। चूंकि यह ठुमरी का राग है, इसलिए गायन के अंत में पीलू या भैरवी में ठुमरी या टप्पा गाकर गायन समाप्त करने की परंपरा है। अगर भजन या धुन के साथ गायन समाप्त होता है, तो भी पीलू की छाया दिखाई पड़ती है। कुछ लोकगीत भी इस राग के बहुत समीप देखे जा सकते हैं।

Raag Pilu Bandish – पिया बिन जिया मोरा

 

Raag Pilu Notes

raag pilu parichay
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Raag Pilu Taan – 8 Matra

सम से 8 मात्रा की तानें-

(1) .निसा गरे सानि ..प । .म.प .निसा रे रेसा ।
(2) .निसा गम पम गम । पम रे सानि सा- ।
(3) गम पध निध पम । गम पम रे सा ।
(4) .निसा गम पनि सांनि। धप म रेसा .निसा ।
(5) निध पम गम पध । निध पम रे सानि ।

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How To Read Sargam Notes

कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या ( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • कोमल ग: ग(k) या ग
  • कोमल रे: रे(k) या रे
  • कोमल ध: ध(k) या ध
  • कोमल नि: नि(k) या नि

नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।

तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • तीव्र म: म(t) या मे

स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।

तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।

मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।

  • उदाहरण: .नि = मंद्र सप्तक नि

तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।

    • उदाहरण: सां = तार सप्तक सा
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