नाद की परिभाषा और प्रकार
नाद किसे कहते हैं,नाद की परिभाषा, नाद की विशेषताएं, नाद कितने प्रकार के होते हैं?
Naad Ki Paribhasha
नाद की परिभाषा – नियमित और स्थिर मधुर ध्वनि को नाद कहा जाता है। इसे संगीत की ध्वनि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है क्योंकि संगीत में उपयोग होने वाली ध्वनियाँ हमेशा मधुर और कानों को आनंद देने वाली होती हैं। अस्थिर और अमधुर ध्वनियों को संगीत में शामिल नहीं किया जाता है।
“संगीतोपयोगी मधुर ध्वनि को नाद कहते है”
नाद के प्रकार
नाद दो प्रकार के होते हैं:
आहत नाद: यह वह ध्वनि है जो बाहरी साधनों जैसे वाद्य यंत्र या किसी वस्तु की टकर से उत्पन्न होती है।
अनहत नाद: यह वह ध्वनि है जो बिना किसी बाहरी साधन के, विशेष ध्यान या साधना के माध्यम से आत्मा या अंदर से उत्पन्न होती है।
नाद की विशेषताएँ और लक्षण
नाद की तीन प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण होते हैं:
छोटा या बड़ा नाद: धीमी ध्वनि को छोटा नाद और तेज ध्वनि को बड़ा नाद कहा जाता है। छोटा नाद कम दूरी तक सुनाई देता है जबकि बड़ा नाद अधिक दूरी तक पहुँचता है। छोटे तथा बड़े नाद का स्वर एक ही रहता हैं बस दोनों में अंतर केवल इतना होता हैं की छोटा नाद कम दुरी तथा बड़ा नाद अधिक दुरी तक सुनाई पड़ता हैं |
ऊंचाई या निचाई: गाते बजाते समय हम अनुभव करते हैं की सा से ऊपर रे रे से ऊपर ग और ग से ऊपर म होता हैं, इसी प्रकार जैसे हम ऊपर बढ़ते जाते हैं तो स्वर ऊंचा होता जाता हैं और जब ऊपर से नीचे उतरते हैं तो स्वर नीचा होता जाता हैं।
जाति और गुण: वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रत्येक नाद के साथ कई सहायक नाद उत्पन्न होते हैं, जिन्हें सुनकर पहचानना कठिन होता है। सहायक नादों की मात्रा और उनकी तीव्रता के अनुसार प्रत्येक वाद्य यंत्र की ध्वनि भिन्न होती है। इसी को नाद की जाति और गुण कहा जाता है।
नाद की जाति के आधार पर विभिन्न वाद्य यंत्रों जैसे सितार, सारंगी, तबला, और हारमोनियम की ध्वनियाँ अलग-अलग सुनाई देती हैं, जिससे हर वाद्य का स्वर विशेष बनता है।
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नाद की परिभाषा करने वाला संगीत रत्नाकर ग्रंथ का श्लोक बताए।
प्रसिद्ध ग्रंथ संगीतरत्नाकर के अनुसार नाद की व्याख्या निम्नलिखित है।
नकारं प्रांणमामानं दकारमनलं बिंदु:। जात: प्राणअग्नि संयोगातेनम नदोभिधीयते ।।
अर्थ “नकार” प्राण वाचक है तथा दकार अग्नि वचाक है अर्थात जो अग्नि और वायु के योग से उत्पन्न हुआ हो ,उसे नाद कहते है ।
आहोतीनहतश्चेती द्विधा नादो निग्ध्य्ते सोय प्रकाशते पिंडे तस्तात पिंडो भिधियते
अर्थ, नाद के दो प्रकार है – १) आहत २) अनाहत
ये दोनो देह (पिंड) में प्रकट होते है ।
कृपया संगीत रत्नाकर ग्रंथ में वर्णित नाद की परिभाषा का श्लोक बताईये
प्रसिद्ध ग्रंथ संगीतरत्नाकर के अनुसार नाद की व्याख्या निम्नलिखित है।
नकारं प्रांणमामानं दकारमनलं बिंदु:। जात: प्राणअग्नि संयोगातेनम नदोभिधीयते ।।
अर्थ “नकार” प्राण वाचक है तथा दकार अग्नि वचाक है अर्थात जो अग्नि और वायु के योग से उत्पन्न हुआ हो ,उसे नाद कहते है ।
आहोतीनहतश्चेती द्विधा नादो निग्ध्य्ते सोय प्रकाशते पिंडे तस्तात पिंडो भिधियते
अर्थ, नाद के दो प्रकार है – १) आहत २) अनाहत