धमार गायन शैली – Dhamar Gayan Shaili

धमार(DHAMAR) एक गहन और समृद्ध संगीत शैली है, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की पुरानी परंपराओं को दर्शाती है। इसकी विशिष्ट लयकारी और स्वरूप इसे अन्य गीत शैलियों से अलग बनाते हैं। धमार का अभ्यास संगीत प्रेमियों और विद्यार्थियों को संगीत की गहराई और सुंदरता का अनुभव कराता है।

dhamar gayan shaili

धमार गायन शैली

Dhamar Music

धमार भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक प्राचीन और विशिष्ट गीत प्रकार है। इसे विशेष रूप से धमार ताल में गाया जाता है और इसमें राधा-कृष्ण और गोपियों की होली का वर्णन होता है। इस कारण, इसे कुछ लोग होरी भी कहते हैं। धमार में ध्रुपद के समान नोम-तोम का आलाप और लयकारी प्रदर्शित की जाती है।

DHAMAR GAYAN SHAILI

  • लयकारी: धमार में दुगुन, तिगुन, चौगुन, और आड़ जैसी लयकारियों का प्रयोग किया जाता है। इन लयकारियों को गीत के शब्दों के माध्यम से दर्शाया जाता है।

  • मीड और गमक: धमार में मीड और गमक का भरपूर प्रयोग होता है, जिससे राग की गहराई और सौंदर्य उभरता है।

  • स्वर समूह: इसमें खटके अथवा तान के समान स्वर-समूह वर्ज्य होते हैं, जिससे धमार की विशिष्टता बनी रहती है।

  • सरगम: धमार में सरगम का प्रयोग होता है, जो ख्याल के सरगम से भिन्न होता है।

  • गंभीरता: ध्रुपद और धमार के प्रत्येक अंग में गंभीरता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

धमार और होरी में अंतर

कुछ विद्वान इसे होरी भी कहते हैं, परंतु यह उचित नहीं है। होली और होरी गीत का एक अलग प्रकार है। होली और होरी में केवल ‘ल’ और ‘र’ का अंतर संगीत के शुरुआती विद्यार्थियों और प्रेमियों के लिए भ्रामक हो सकता है। अतः इस प्रकार को धमार और दूसरे प्रकार को होली अथवा होरी कहना उचित है।

धमार में वाद्य संगत

धमार के साथ पखावज बजाने की परंपरा है। पखावज न होने पर कभी-कभी तबले से भी संगत की जाती है।

राग भैरव में धमार का उदाहरण

“आज रसमाते होरी खेले लाल। तारी दै दै नाचत गावत संग बृज बाल।”

धमार ताल – Dhamar Taal

धमार ताल (14 मात्रा)का ठेका

  • विभाग: 4
  • ताली: 1, 5, 11
  • खाली: 8

ठेका: क धि ट धि ट | धा – | ग ति ट | ति ट ता –

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