चतुरंग क्या है? Chaturang in Music

चतुरंग क्या है?” में जानें Chaturang की विस्तृत जानकारी और इसका महत्व भारतीय संगीत में। चतुरंग एक विशिष्ट गायन शैली है जिसमें चार अंग शामिल होते हैं: पद, तराना, सरगम, और मृदंग या पखावज। यह शैली चतुरंग गायन के रूप में जानी जाती है और इसे द्रुत लय प्रधान गायन शैली के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस लेख में,

आप जानेंगे कि चतुरंग किसे कहते हैं, इसकी उत्पत्ति का इतिहास, और कैसे chaturang in music का विकास हुआ। चतुरंग की इस अद्वितीय शैली का उपयोग विशेष रूप से शास्त्रीय संगीत के प्रस्तुतिकरण में किया जाता है और यह ख्याल की तरह स्थाई और अंतरा भागों में विभाजित होती है। हमारे लेख के माध्यम से, आप चतुरंग की विशेषताओं और इसके चार अंगों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। Chaturang की इस अनूठी शैली के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें और भारतीय संगीत की इस अद्भुत परंपरा को समझें।

chaturang gayan shaili

चतुरंग क्या है ? 

चतुरंग एक विशेष गायन शैली है जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की विविधता को दर्शाती है। इस शैली का नाम “चतुरंग” चार अंगों (चार तत्वों) के संयोजन के कारण पड़ा है। आइए जानें चतुरंग के विभिन्न पहलुओं के बारे में:

Chaturang – चतुरंग की परिभाषा

चतुरंग वह गायन शैली है जिसमें किसी राग की बंदिश के अंतर्गत चार अंग शामिल होते हैं: ख्याल, तवले या पखावज, सरगम, और तराना। इन चार अंगों के समावेश के कारण इसे ‘चतुरंग’ कहा जाता है। यह शैली ख्याल की तरह स्थाई और अंतरा भागों में विभाजित होती है और प्रायः द्वत ख्याल की शैली में गाई जाती है।

चतुरंग की उत्पत्ति

चतुरंग की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं, लेकिन यह माना जाता है कि इसका आविष्कार मतंग काल के दौरान हुआ था। संगीत पंडितों ने एक ही बंदिश में शैलियों को समेटकर चतुरंग का निर्माण किया, जैसा कि सरगम पुस्तक में उल्लेखित है। इसे मतंगमुनि के काल से जोड़कर देखा जाता है और “क्रमिक पुस्तक” मालिका के तीसरे भाग में राग देश के चतुरंग गीत प्रकार का उल्लेख मिलता है।

चतुरंग के चार अंग

चतुरंग में चार मुख्य अंग होते हैं:

  1. पद: इसमें गीत या कविता के शब्द होते हैं।
  2. तराना: इसमें तराने के बोलों का गायन किया जाता है।
  3. सरगम: इसमें विशिष्ट राग की सरगम गाई जाती है।
  4. मृदंग या पखावज: इसमें मृदंग या पखावज के बोलों की छोटी सी परन का गायन किया जाता है।

चतुरंग की विशेषता

चतुरंग एक द्रुत लय प्रधान गायन शैली है जिसमें छोटे-छोटे आलाप, बोल आलाप और बहलावे होते हैं। इसमें भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष पर अधिक ध्यान दिया जाता है। यह शैली अधिकतर चंचल प्रकृति के रागों में गाई जाती है।

चतुरंग गायन शैली का संक्षिप्त परिचय

चतुरंग एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण गायन शैली है जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की विविधता को दर्शाती है। यह शैली चार प्रमुख अंगों – पद, तराना, सरगम, और मृदंग या पखावज – के संयोजन से बनती है, जो इसे अन्य गायन शैलियों से अलग बनाते हैं। चतुरंग की उत्पत्ति का इतिहास मतंग काल से जुड़ा है और इसका विकास संगीत शिक्षा और प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया था।

इसकी द्रुत लय प्रधान विशेषता और कला पक्ष की गहराई इसे एक अद्वितीय और प्रभावशाली गायन शैली बनाती है। चतुरंग में छोटे-छोटे आलाप और बोल आलाप शामिल होते हैं, जो इसके भावनात्मक और तकनीकी प्रभाव को बढ़ाते हैं।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की इस अद्भुत परंपरा को समझना और उसका अभ्यास करना संगीत प्रेमियों और शास्त्रीय गायकों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। चतुरंग की इस अनूठी शैली के अध्ययन से संगीत की गहराई और उसकी विविधताओं का सही अनुभव प्राप्त होता है।

For more piano notes, Harmonium Notes, Classical Raga &  Guitar Chords, please visit again. And always type

For Piano/Harmonium Notes – Click
For classical Raga & Theory – Indianraag.com
For Guitar Chords – Guitar.indianraag.com

Best Airpods

indianraag sahayata

Leave a Comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

error: Content is protected !!
Scroll to Top