Vadya Yantra In Hindi
Vadya Yantra – भारत की प्राचीन संगीत परंपरा में वाद्यों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। रामायण, उपनिषद् जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी विभिन्न प्रकार के वाद्यों का उल्लेख मिलता है। इन वाद्यों को समझने और अध्ययन करने की सरलता के लिए शारंगदेव ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘संगीत रत्नाकर’ में वाद्यों को चार मुख्य वर्गों में विभाजित किया है: तत, सुषिर, अवनद्ध, और घन। इन वर्गों को शारंगदेव ने एक श्लोक में समाहित किया:
“वाद्यतन्त्री ततं सुधिर मतम्। चर्मावनद्ध वदनमवनद्ध तु वाद्यते।
घनोमूर्तिः ऽभिधाताद्वधते यंत्र तद्धनम्”
– संगीत रत्नाकर
वाद्यों के प्रकार
वाद्ययंत्र के मुख्यतः 4 प्रकार माने जाते है
नीचे इन चारों वर्गों का विस्तार से वर्णन किया गया है:
Vadya Yantra Ke Prakar
- तंतु वाद्य
- सुषिर वाद्य
- अवनद्ध वाद्य
- घन वाद्य
1. तत वाद्य (तंतु वाद्य)
तत वाद्य वे वाद्य होते हैं जिनमें तार या तंतु द्वारा स्वर उत्पन्न होता है। इसमें वीणा, तानपुरा, सारंगी, सितार, और सरोद जैसे वाद्य प्रमुख हैं। वीणा को इन सभी वाद्यों की जननी माना जाता है। तानपुरा को अँगुलियों से, सितार को मिजराब से और सरोद को जवा (धातु की पत्ती) से बजाया जाता है। सारंगी और बेला जैसे वाद्यों को कमानी से बजाया जाता है। इन वाद्यों को ‘वितत वाद्य’ भी कहा जाता है।
2. सुषिर वाद्य
सुषिर वाद्य वे वाद्य होते हैं जिनमें हवा के प्रवाह से ध्वनि उत्पन्न होती है। जैसे हारमोनियम, शहनाई, बाँसुरी, शंख और बिगुल। हारमोनियम में रीड के द्वारा और शहनाई में पत्ती के द्वारा स्वर उत्पन्न होता है, जबकि बाँसुरी और बिगुल में छिद्रों के माध्यम से हवा के प्रवाह से ध्वनि उत्पन्न होती है।
3. अवनद्ध वाद्य
अवनद्ध वाद्य वे वाद्य हैं जिनमें चमड़े पर आघात करके स्वर उत्पन्न होते हैं। इन वाद्यों का मुख्य उपयोग ताल प्रदान करने के लिए होता है। तबला, पखावज, ढोलक, डमरू, नगाड़ा, और भेरी अवनद्ध वाद्यों के उदाहरण हैं। इनमें विभिन्न स्वर उत्पन्न नहीं होते, बल्कि एक निश्चित स्वर ही निकलता है, जिसे ध्वनि मिलान के अनुसार बदला जा सकता है।
4. घन वाद्य
घन वाद्य वे वाद्य हैं जिनमें धातु या लकड़ी पर आघात करके ध्वनि उत्पन्न की जाती है। मंजीरा, झाँझ, और नलतरंग जैसे वाद्य इसके उदाहरण हैं। इन वाद्यों में ध्वनि की स्थिरता कम होती है और इनमें मींड या स्वर का खिंचाव संभव नहीं है। आमतौर पर ये वाद्य लय दिखाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, जैसे कि मंजीरा।
अन्य मत
कुछ विद्वानों का मत है कि वाद्यों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: तत, घन, और सुषिर। इस वर्गीकरण में अवनद्ध वाद्यों को घन वाद्यों में सम्मिलित कर लिया गया है। हालांकि, शारंगदेव द्वारा किया गया विभाजन ही मुख्य रूप से मान्य और प्रचलित है।
संगीत रत्नाकर के अनुसार, तत, सुषिर, अवनद्ध और घन ये चार प्रमुख वाद्य वर्ग हैं, जिनसे भारतीय संगीत का आधार बनता है। इन वाद्यों की परंपरा और उनकी ध्वनि के माध्यम से भारतीय संगीत की समृद्ध धरोहर को आगे बढ़ाया गया है।
THANK-YOU
आपका हमारी पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद! हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए लाभदायक रही होगी। यदि आप इस पोस्ट में किसी भी प्रकार की त्रुटि पाते हैं, तो कृपया हमें कमेंट करके बताएं। हम अपनी त्रुटियों को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
हमारा उद्देश्य है कि हम आपको भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहराइयों से परिचित कराएँ और आपके संगीत प्रेम को और अधिक समृद्ध बनाएँ। आपके सुझाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। यदि आप किसी विशेष राग की बंदिश या परिचय के बारे में जानना चाहते हैं, तो हमें अवश्य बताएं। हम आपकी जरूरतों के अनुसार अगली पोस्ट में उस राग की जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे।
आपके समर्थन और प्रोत्साहन के लिए हम आभारी हैं। कृपया जुड़े रहें और हमारी पोस्ट को अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें।
धन्यवाद और शुभकामनाएँ!
प्रणाम
IndianRaag.com
आपकी मदद की ज़रूरत है 🙏
प्रिय मित्रों,
इस समय हमें आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। आपकी छोटी सी मदद भी हमारे लिए बहुत मायने रखती है। अगर आप हमारी इस यात्रा में साथ देना चाहते हैं, तो कृपया हमें आर्थिक रूप से सहयोग करें।
हमने नीचे QR कोड और UPI डिटेल्स दी हैं। आप QR कोड का स्क्रीनशॉट लेकर उसे किसी भी UPI ऐप के जरिए पेमेंट कर सकते हैं।
हर छोटी-बड़ी मदद हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हम आपके सहयोग के लिए दिल से आभारी रहेंगे। 🙏
सहयोग करने के तरीके:
- QR कोड: स्क्रीनशॉट लेकर UPI ऐप से पे करें।
- UPI ID: Indianraag@kotak