संगीत के पारिभाषिक शब्द – स्वर, नाद, लय, सप्तक, राग, जाति, थाट, श्रुति, गायन के प्रकार आदि का ज्ञान

संगीत के पारिभाषिक शब्द

भारतीय संगीत का परिचय

भारतीय संगीत भारतीय उपमहाद्वीप की गायन वादन कला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह दो मुख्य प्रणालियों में विभाजित है: 

  1. कर्नाटक संगीत
  2. भारतीय संगीत

कर्नाटक संगीत प्रणाली

दक्षिण भारतीय संगीत प्रणाली, जिसे कर्नाटक संगीत कहा जाता है, में कलात्मक खूबियाँ और समाज में संगीत कला के मौलिक विधियों द्वारा संस्कार की क्षमता है। यह प्रणाली लोगों को कला की ओर आकर्षित करती है और समाज में संगीत की मौलिकता को प्रकट करती है।

हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली

उत्तर भारतीय संगीत प्रणाली, जिसे हिन्दुस्तानी संगीत कहा जाता है, श्रोताओं को कला की ओर आकर्षित करती है और भावना तथा रस का ऐसा स्त्रोत प्रदान करती है कि श्रोता स्वरसागर में डूब जाते हैं। यह प्रणाली न केवल मनोरंजन प्रदान करती है, बल्कि आत्मानन्द की अनुभूति भी कराती है।

नाद किसे कहते हैं?

आवाज या ध्वनि विशेष को नाद कहते हैं। नाद के दो प्रकार होते हैं:

अनहद नाद

प्राकृतिक ध्वनियाँ जैसे नदियों की कलकल, झरनों की झरझर, और पक्षियों का कूजन अनहद नाद का उदाहरण हैं। यह नाद प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है।

लौकिक नाद

लौकिक नाद वह होता है जो दो वस्तुओं के परस्पर घर्षण या टकराने से उत्पन्न होता है। मानव प्राणी द्वारा निर्मित आवाज जैसे गायक का स्वर भी लौकिक नाद का उदाहरण है।

संगीत के पारिभाषिक शब्द

स्वर किसे कहते हैं?

स्वर एक निश्चित ऊँचाई की आवाज़ का नाम है, जो कर्णमधुर और आनंददायी होती है। भारतीय संगीत में स्वरों की उँचाई के आधार पर 22 श्रुतियों के साथ सात शुद्ध स्वर होते हैं:

  • षडज (सा)
  • ऋषभ (रे)
  • गंधार (ग)
  • मध्यम (म)
  • पंचम (प)
  • धैवत (ध)
  • निषाद (नि)

इन सात शुद्ध स्वरों के साथ कुल 12 स्वर होते हैं, जिनमें कोमल और तीव्र स्वर शामिल होते हैं।

सप्तक किसे कहते हैं?

गायक की आवाज़ की रेंज तीन सप्तक तक सीमित होती है:

  • मध्य सप्तक: प्राकृतिक सप्तक
  • मंद्र सप्तक: कम फ्रिक्वेंसी वाला सप्तक
  • तार सप्तक: ऊँची फ्रिक्वेंसी वाला सप्तक

स्वर की श्रेणियाँ

  • कोमल स्वर: रे, ग, ध, नि
  • तीव्र स्वर: म

वर्ण किसे कहते हैं?

वर्ण का अर्थ संगीत में मोड या स्वर की दिशा होता है। चार प्रकार के वर्ण होते हैं:

  • आरोही वर्णनीची आवाज़ को ऊँचाई की ओर ले जाना। उदाहरण: सा से रे तक की ध्वनि।
  • अवरोही वर्णऊँची आवाज़ को नीची की ओर ले जाना। उदाहरण: रे से सा तक की ध्वनि।
  • स्थाई वर्णएक ही स्थान पर रुकते हुए कुछ देर तक कायम रहना। उदाहरण: ममम, धध।
  • संचार वर्णउपरोक्त तीन वर्णों का मिश्रण, जिसमें आवाज़ की दिशा बदलने की स्वतंत्रता होती है।

आरोह और अवरोह

  • आरोहमध्य सप्तक के सा से तार सप्तक के सा तक चढ़ाने की क्रिया।
  • अवरोहतार सप्तक के सा से मध्य सप्तक के सा तक उतरने की क्रिया।

राग की परिभाषा

स्वरों की ऐसी मधुर तथा आकर्षक ध्वनि जो सुनिश्चित आरोह-अवरोह, जाति, समय, वर्ण, वादी-संवादी, मुख्य-अंग आदि नियमों से बंधी हो और जो वायुमंडल पर अपना प्रभाव अंकित करने में समर्थ हो। वातावरण पर प्रभाव डालने के लिए राग में गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना चाहिए।

राग के 8 अंग

ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार हैं:

  • स्वर
  • गीत
  • ताल और लय
  • आलाप
  • तान
  • मींड
  • गमक
  • बोलआलाप और बोलतान

उपर्युक्त 8 अंगों के समुचित प्रयोग के द्वारा ही राग को सजाया जाता है।

जाति किसे कहते हैं?

राग स्वरूप अपने विशेष प्रकार के आरोह-अवरोह के क्रम में रहता है। जिस राग में सातों स्वर सा रे ग म प ध नि हों उसे सम्पूर्ण-सम्पूर्ण जाति कहते हैं। इसी प्रकार 6 स्वरों के क्रम को षाढव, 5 स्वरों के क्रम को औढव और 4 स्वरों को सुरतर कहते हैं। ध्यान में रखें कि आरोह में जितने स्वर लगेंगे, उससे कहीं अधिक या कम से कम आरोह के बराबर स्वर अवरोह में आने चाहिए। आरोह की अपेक्षा अवरोह में कम स्वर भारतीय संगीत में नहीं लिए जाते, कारण वह नितांत अस्वाभाविक बात है। इस प्रकार जातियों के कुल 10 प्रकार बनते हैं:

 

#आरोहअवरोहजातिराग
155औढव – औढवभूपाली, गुणकली, मेघ मल्हार
256औढव – षाढवदेसी, शुद्ध सारंग
357औढव – सम्पूर्णबसंत, बिहाग, हमीर
466षाढव – षाढवनायकी कानड़ा, गुर्जरी तोड़ी, ललित
567षाढव – सम्पूर्णअड़ाना, कौसी कानड़ा
676सम्पूर्ण – षाढवमिया मल्हार
777सम्पूर्ण – सम्पूर्णअहीर भैरव, यमन

 

थाट किसे कहते हैं – रागों का वर्गीकरण

संस्कृत में थाट का अर्थ है मेल। थाट, यह रागों के वर्गीकरण हेतु तैयार की हुई पद्धति है। पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने 10 थाट प्रचलित किए जिनको कोमल, शुद्ध और तीव्र स्वरों के आधार पर बनाया गया। ये थाट निम्नलिखित हैं:

  1. कल्याण
  2. बिलावल
  3. खमाज
  4. भैरव
  5. पूर्वी
  6. मारवा
  7. काफी
  8. आसावरी
  9. भैरवी
  10. तोड़ी

उपरोक्त राग पद्धति प्रचलन में होते हुए भी आज बहुत से ऐसे राग हैं जो इन थाटों के खांचों में नहीं बैठते। अतः कुछ विद्वान इन्हें नकारते हुए रागांग पद्धति अर्थात राग वाचक स्वर समूह तथा उसके आरोह अवरोह को ही मान्यता देते हैं।

वादी/संवादी: राग का केंद्र

राग एक माहौल या वातावरण विशेष का नाम है जो रंजक भी है। स्पष्ट रूप से इस वातावरण निर्माण के केंद्र में वह स्वरावली है जो रागवाचक है, इसे रागांग कहते हैं। इस रागांग का केंद्र बिंदु होता है वादी स्वर। इसे राग का जीव या प्राण स्वर भी कहा गया है। राग को राज्य की संज्ञा देकर वादी स्वर को उसका राजा कहा जाता है। स्पष्टतः वादी का प्रयोग अन्य स्वरों की अपेक्षा सर्वाधिक होता है तथा इस पर ठहराव भी अधिक होता है।

यह सर्वविदित है कि एक सप्तक में दो भाव पैदा होते हैं:

  • षड्ज-पंचम (सा-प)
  • षड्ज-मध्यम (सा-म)

यदि वादी स्वर पूर्वांग में है तो उसका, उस स्वर से संवाद करने वाला, उक्त दोनों भावों में से किसी एक भाव में (किसी निश्चित राग के अनुसार), उत्तरांग में एक स्वर जरूर होगा जो सप्तक के दोनों अंगों (पूर्वांग या उत्तरांग) को संतुलित कर राग की रंजकता में वृद्धि करने में सहायक होगा। इस स्वर को संवादी स्वर कहते हैं। वादी और संवादी स्वर पूर्वांग और उत्तरांग की तुलना पर समान वज़न के होने चाहिए तभी राग स्वरुप शुद्ध शास्त्रीय और रस स्रोत बहाने में समर्थ होगा।

घराना: संगीत की परंपरा

भारतीय संगीत में संगीत शिक्षा एक कंठ से दूसरे कंठ में ज्यों की त्यों उतारी जाती है। जिसे नायकी ढंग की शिक्षा कहते हैं। और जब एक ही गुरु के अनेक शिष्य हो जाते हैं तो उन्हें घराना या परंपरा कहा जाता है। किराना घराना, ग्वालियर घराना, आगरा घराना, जयपुर घराना इत्यादि घराने भारतीय संगीत में प्रसिद्ध हैं।

आविर्भाव और तिरोभाव: राग की विशेषताएं

आविर्भाव और तिरोभाव भारतीय संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। किसी भी राग के स्वरों को ऐसे क्रम में लगाना, जिससे किसी दूसरे राग की छाया दृष्टिगोचर होने लगे, उसे तिरोभाव कहते हैं। परन्तु राग के मार्मिक स्वर पुनः लगाकर राग का आविर्भाव किया जाता है जिससे रागरूप स्पष्ट अपने रूप में आ जाए, आविर्भाव कहलाता है।

आविर्भाव-तिरोभाव बहुत कलापूर्ण है और अनुभवी, राग विज्ञान के दक्ष लोगों द्वारा ही संभव है अन्यथा इसमें राग स्वरूप नष्ट होने की अधिक संभावना रहती है।

मनाक् तथा इषत् स्पर्श

मींड जहाँ से प्रारंभ होती है उस स्वर का आभास जो कानों के द्वारा सूक्ष्मतर ढंग से सुना जाता है, उस प्रारंभिक आभास वाले स्वर को इषत् स्पर्श कहते हैं। जिस प्रकार मन में कहीं से भी विचार आते हैं तदनुसार मींड आती हुई दिखाई दे, लेकिन कहाँ से आ रही है वह सिर्फ मन द्वारा ही जान सकते हैं उसे मनाक् स्पर्श कहते हैं।

लाग और डाट

मींड के आरोह को लाग और मींड के अवरोह को डाट कहते हैं। इशत् और मनाक् स्पर्श लाग-डाट के आगे की स्थितियाँ हैं।

श्रुति किसे कहते हैं?

भारतीय शास्त्रीय संगीत श्रुतिव्यवस्था पर प्रतिष्ठित है और अनेक राग, जैसे राग बहार आदि, हमें आज के 12 स्वरों के प्रचलित वातावरण से श्रुतियों की ओर खींचते हैं। श्रुति का अर्थ है वह सूक्ष्म नाद लहरी जो कि श्रवणेन्द्रिय (कान) के द्वारा सुनी जा सके। 22 श्रुतियां, सा से सां (मध्य सप्तक के सा से तार सप्तक के सा तक) तक अवस्थित हैं।

पूर्वांग और उत्तरांग

मध्य सप्तक के आधे भाग, यानि षडज, ॠषभ, गंधार, और मध्यम स्वरों को पूर्वांग कहते हैं। वहीं, दूसरे भाग, यानि पंचम, धैवत, निषाद और तार-षडज को उत्तरांग कहते हैं।

पुरुष राग

प्राचीन काल के संगीत विश्लेषण के अनुसार, छह (6) पुरुष राग और छत्तीस (36) रागिनियाँ या उनकी भार्याएँ हैं। वे 6 राग हैं: भैरव, मालकौंस, हिन्डोल, श्रीराग, दीपक, और मेघ।

ताल किसे कहते हैं?

ताल एक निश्चित मात्राओं में बंधा और उसमें उपयोग में आने वाले बोलों के निश्चित वज़न को कहते हैं। मात्रा (beat) किसी भी ताल के न्यूनतम अवयव को कहते हैं। हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में विभिन्न तालों का प्रयोग किया जाता है, जैसे: एकताल, त्रिताल (तीनताल), झपताल, केहरवा, दादरा, झूमरा, तिलवाड़ा, दीपचंदी, चांचर, चौताल, आड़ा-चौताल, रूपक, चंद्रक्रीड़ा, सवारी, पंजाबी, धुमाली, धमार आदि।

हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में प्रचलित गायन के प्रकार

हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में निम्न गायन के प्रकार प्रचलित हैं:

ध्रुवपद

गंभीर सार्थ शब्दावली और गांभीर्य से ओतप्रोत स्वर संयोजन द्वारा गाया जाने वाला प्रबंध ध्रुवपद कहलाता है। इसमें प्रयुक्त होने वाले ताल हैं: ब्रम्हताल, मत्तताल, गजझंपा, चौताल, शूलफाक आदि। गाते समय दुगनी चौगनी आड़ी कुआड़ी बियाड़ी लय का काम किया जाता है।

लक्षण गीत

राग स्वरूप को व्यक्त करने वाली कविता जो छोटे ख्याल के रूप में बंधी रहती है, लक्षण गीत कहलाती है।

टप्पा

टप्पा का अर्थ है निश्चित स्थान पर पहुंचना या ठहरी हुई मंजिल तय करना। पंजाबी भाषा की रचनाएँ, जैसे हीर-राँझा, सोहिनी-महिवाल आदि, टप्पा कहलाती हैं। यह पंजाबी ताल में गाया जाता है और विशेष प्रकार का तरल, मधुर, खुला हुआ कन्ठ आवश्यक होता है।

सरगम

स्वरों की मधुर मालिका जो कर्णमधुर और आकर्षक हो और राग रूप को स्पष्ट कर दे, वही सरगम है। इसे आलाप के बजाय स्वरों का उच्चार करते हुए गाया जाता है।

कव्वाली

कव्वाली नामक ताल में गाया जाने वाला प्रबंध कव्वाली कहलाता है। विशेषकर मुस्लिम भजन प्रणाली, जैसे खम्सा और नात् कव्वाली।

धमार

धमार नामक ताल में होरी के प्रसंग के गीत, जो ध्रुवपद शैली पर गाए जाते हैं, धमार कहलाते हैं।

ठुमरी

राधाकृष्ण के या प्रेम की भावना से परिपूर्ण श्रंगारिक गीत, जो खटकेदार स्वरसंगतियों और भावानुकूल बोल आलापों से सजाया जाता है, ठुमरी कहलाती है। इसमें प्रयुक्त होने वाले ताल हैं: पंजाबी, चांचर, दीपचंदी, कहरवा, दादरा आदि।

तराना

वीणा वादन के आघात प्रत्याघातों को निरर्थक दमदार बोलों द्वारा व्यक्त करते हुए वाद्य संगीत की चमाचम सुरावट कंठ द्वारा निकालना, तराना कहलाता है। तेज लय में ना ना ना दिर दिरर्रर्र आदि कहने का नाम तराना नहीं है।

भजन

संतों द्वारा रचे हुए ईश्वर के गुणानुवाद और लीलाओं के वर्णन के प्रबंध, जिनका गायन आत्मानंद और आत्मतुष्टि का अनुभव कराता है, भजन कहलाते हैं। इनके ताल हैं: कहरवा, धुमाली, दादरा आदि।

गीत

आधुनिक कवियों द्वारा रचे हुए भावगीत जो शब्द अर्थ प्रधान रहते हैं और लोक संगीत के आधार पर अर्थानुकूल गाए जाते हैं, गीत कहलाते हैं।

खयाल

खयाल फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है कल्पना। खयाल के 2 भेद हैं: बड़ा खयाल और छोटा खयाल। बड़ा खयाल, विलम्बित लय में ध्रुवपद की गंभीरता के साथ गाया जाता है और कल्पना के आधार पर विस्तारित किया जाता है। छोटे खयाल में चंचल सरस चमत्कार प्रधान और लय के आकर्षण से परिपूर्ण होता है।

होरी

होली के प्रसंग की कविता या गीत जो ठुमरी के आधार पर गाया जाता है, होरी कहलाता है।

चतुरंग

चतुरंग गीत का ऐसा प्रकार है जिसमें चार प्रकार के प्रबंध दर्शन एक साथ होते हैं: ख्याल, तराना, सरगम, और तबला या पखावज की छोटी सी परन।

ग़ज़ल

उर्दू भाषा की शायरी या कविता गायन ग़ज़ल कहलाती है। यह शब्द प्रधान और अर्थ दर्शक गीत प्रकार है, जिसमें खटके, मुरकियाँ आदि से मंडित किया जाता है। इसके ताल हैं: कहरवा, धुमाली, दादरा आदि।

खटके और मुरकियाँ

सुंदर मुरकियाँ ठुमरी की जान होती हैं। मुरकी वह मीठी रसीली स्वर योजनाएँ हैं, जो मधुर भाव से कोमल कंठ द्वारा ली जाती हैं। खटके की स्वर योजनाएँ भरे हुए कंठ द्वारा निकाली जाती हैं।

लोक-गीत

यह संगीत दूर-दराज के गांवों में गाया जाता है और इसके अनेक रूप विविध भाषाओं में देखने को मिलते हैं, जैसे चैती, कजरी आदि।

नाट्य संगीत

नाटकों में गाया जाने वाला संगीत नाट्य संगीत कहलाता है।

सुगम संगीत

शास्त्रीय संगीत से सुगम अथवा सरल संगीत, सुगम संगीत कहलाता है। इसमें गाई जाने वाली विधाएँ हैं: गीत, गजल, भजन, कव्वाली, लोक-गीत आदि।

गायकी के 8 अंग (अष्टांग गायकी)

वातावरण पर प्रभाव डालने के लिए राग में गायन, वादन के अविभाज्य 8 अंगों का प्रयोग होना चाहिए। ये 8 अंग या अष्टांग इस प्रकार हैं:

  • स्वर
  • गीत
  • ताल और लय
  • आलाप
  • तान
  • मींड
  • गमक
  • बोलआलाप और बोलतान

इन 8 अंगों के समुचित प्रयोग द्वारा ही राग को सजाया जाता है।

स्वर

स्वर एक निश्चित ऊँचाई की आवाज़ का नाम है। इसमें स्थिरता होनी चाहिए और यह कर्णमधुर आनंददायी होती है। स्वरों के नाम हैं: सा, रे, ग, म, प, ध, नि।

गीत और बंदिश

बंदिश, परम आकर्षक सरस स्वर में डूबी हुई, भावना प्रधान और अर्थ को सुस्पष्ट करने वाली होनी चाहिए। गायक के कंठ द्वारा अपने सत्य रूप में अभिव्यक्त होने चाहिए।

ताल

ताल एक निश्चित मात्राओं में बंधा और उसमें उपयोग में आने वाले बोलों के निश्चित वज़न को कहते हैं। हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली में विभिन्न तालों का प्रयोग किया जाता है, जैसे: एकताल, त्रिताल, झपताल, केहरवा, दादरा आदि।

आलाप और बेहेलावे

आलाप स्वर की ताकत और भाव धारा बहाने के लिए धीमी गति से, ह्रदयवेधी ढंग से लिया जाता है। मींड प्रधान सरस स्वर योजना ही आलाप का आधार है।

तान

राग के स्वरों को तरंग या लहर के समान, न रुकते हुए, न ठिठकते हुए सरस लयपूर्ण स्वर योजनाएं तरंगित की जाती हैं। मोती के दाने के समान एक-एक स्वर का दाना सुस्पष्ट और आकर्षक होना चाहिए।

मींड

मींड का अर्थ होता है घर्षण, घसीट। स्वर को न तोड़ते हुए दूसरे स्वर तक घसीटते हुए ले जाने की क्रिया को मींड कहते हैं।

गमक

मींड के स्वरों के साथ आवश्यक स्वर को उसके पिछले स्वर से धक्का देना पड़ता है, यह क्रिया गमक कहलाती है।

बोल-आलाप और बोल-तान

आलाप और तानों में लय के प्रकारों के साथ रसभंग न होते हुए भावानुकूल अर्थानुकूल गीत की शब्दावली कहना ही बोल-आलाप और बोल-तान की विशेषता है।

लय किसे कहते हैं?

लय किन्हीं दो मात्राओं के बीच की समयावधि को कहते हैं। लय 3 प्रकार की होती हैं: विलंबित-लय, मध्य-लय, और द्रुत-लय।

मात्रा

समय का माना हुआ टुकड़ा या भाग, यह ही ताल की नाड़ी है। सभी ताल की मात्राएँ बराबर होती हैं।

ताली या ताल

ताल का अर्थ है ताली देना और यह एक निश्चित समय चक्र का नाम है। जैसे ताल तीनताल या त्रिताल में 3 हैं इसका अर्थ है कि 16 मात्रा के समय चक्र में 3 स्थानों पर ताली दी जाती है।

काल या खाली

काल का मतलब है खाली या शून्य। काल प्राय: ताल चक्र के मध्य में रहता है।

सम

सम ताल के आरंभ को कहते हैं और यह हमेशा किसी भी ताल की 1ली मात्रा पर आती है।

वाद्ययन्त्रों (साजों) के प्रकार

भारतीय संगीत में वाद्ययन्त्रों (साजों) को अष्टांगों में से सात अंगों को व्यक्त करने की क्षमता होनी चाहिए। इनमें गमक, मींड, तान के खटके, यथास्थान स्वर, और आलाप आदि अंगों की पूर्ण अभिव्यक्ति होती है। भारतीय संगीत में निम्नलिखित पाँच प्रकार के वाद्य प्रचलित हैं:

तत् वाद्य

तत् वाद्य वे वाद्य होते हैं जो नखी, मिजराब, या अंगुली के आघात प्रत्याघातों द्वारा बजाए जाते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • तानपूरा
  • विचित्र वीणा
  • वीणा
  • सरोद
  • गिटार
  • सितार
  • सुरबहार
  • रबाब

इन वाद्यों में स्वर अत्यन्त अल्पकालिक रहता है और बजाने वाले कलाकारों का रियाज और तालीम ही उसमें सौंदर्य वर्धन करती है। स्वर कर्णप्रिय और हृदयग्राही होता है।

तंतु वाद्य

तंतु वाद्य वे वाद्य होते हैं जो गज (bow) की सहायता से बजाए जाते हैं। इनके नाद की अवधि गज की लम्बाई पर निर्भर करती है। इसमें शामिल हैं:

  • सारंगी
  • दिलरुबा
  • बेला (violin)
  • तार शहनाई

इन वाद्यों की संगत से गायन की सरसता और चरमकोटि की सुंदरता बढ़ जाती है।

सुषिर वाद्य

सुषिर वाद्य हवा के दबाव के कारण बजते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • बांसुरी
  • अलगोजा
  • शहनाई
  • क्लेरियोनेट
  • पिकलो
  • हार्मोनियम

अवनद्घ वाद्य

अवनद्घ वाद्य वे वाद्य हैं जो चमड़े से मढ़े होते हैं और विशेषत: ताल के वाद्य होते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • पखावज
  • तबला
  • ढोलक

इन वाद्यों का प्रयोग ताल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए किया जाता है।

घन वाद्य

घन वाद्य वे वाद्य होते हैं जो धातुओं से बने होते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • जलतरंग
  • झांझ
  • तासा
  • मंजीरा
  • घुंघरू
  • घंटा

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