
तराना गायन शैली
Tarana In Music – तराना के शब्द दूसरे गीतों से अलग होते हैं।
इसमें नोम, तोम, तनन, ना, दिर, दानी, देरे, तादानी, अली, यलली आदि शब्द होते हैं।
तराना सभी रागों में गाया जाता है। इसे ख्याल के सभी तालों में गाया जाता है। तराने की गति मध्य लय से धीरे-धीरे बढ़ाई जाती हैं और अधिकतम गति में पहुंचकर इसे समाप्त करते हैं।
तराना गाने का मुख्य उद्देश्य गायकी, लयकारी और उच्चारण अभ्यास है।
द्रुत लय का तराना गाने से वाणी में सफाई आती है।
तराना छोटे ख्याल के बाद गाया जाता है।
कुछ तराना विलंबित लय में भी गाया जाता है लेकिन बहुत कम। कुछ तराना में तबला और पखावज के बोल भी रहते हैं।
ऐसे तो तराने के शब्द का कोई मतलब नहीं निकल पाता है।
लेकिन उस्ताद आमिर खान साहब का कहना था की तराने के शब्दों का भी अर्थ होता है। उनके अनुसार तराने में अरबी फारसी के शब्द होते हैं जिनमें बंदा खुदा से प्रार्थना करता है।
तराना की उत्पत्ति
तराने के आविष्कार के विषय में कई मत हैं कुछ लोग तराने का आविष्कारक अमीर खुसरो को मानते हैं । मारिफुन्नगमात के रचयिता अली के अनुसार , यह तर्ज तराना दिल्ली घराने के अमीर खुसरो का आविष्कार किया हुआ है । श्रीपद बन्द्योपाध्याय के अनुसार “ तराना लोकप्रिय गायन का एक प्रकार है जिसमें अर्थहीन शब्द जैसे ता , ना , दानी आदि के प्रयोग से तराना शैली बनी है । “
तराना क्या है – तराना का अर्थ
‘ तराना ‘ एक प्रकार की आधुनिक गायन शैली में गीत का प्रकार है ।
इसका निर्माण निरर्थक वर्णों से होता है ।
यह द्रुत लय में गाई जाने वाली गायन शैली है ।
स्वर , ताल , अनवद्ध वाद्यों के पाट तथा तेन अंगों से बनी हुई रचना , जो द्रुतलय गाई जाती है , वह तराना नाम से पुकारी जाती है ।
इसमें लय का महत्त्व अधिक होता है , क्योंकि इसके बोलों का आधार तीव्र गति पर निर्भर माना जाता है ।
इसमें अर्थहीन बोलों को कहने व गाने हेतु अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है ।
इसमें वर्ण की वैचित्र्यता , चामत्कारिक रूप से परिलक्षित होती है ।
इसकी रचना तीनताल एकताल झपताल तथा आड़ा – चौताल आदि तालों में की जाती है ।
दक्षिण भारतीय संगीत में इसे ‘ तिल्लाना ‘ के नाम से बुलाते हैं ।
वास्तव में , हिन्दू मुस्लिम संस्कृति के समय हुए संसर्ग से जिन गायन शैलियों का निर्माण हुआ था , यह भी उन्हीं में से एक मानी जाती है ।
तराने का सक्षिप्त वर्णन – तराना एक आधुनिक गायन शैली है जिसमें निरर्थक शब्दों का उपयोग होता है। यह सभी रागों और तालों में गाया जाता है, खासकर ख्याल के बाद। तराने की गति मध्य लय से शुरू होकर द्रुत लय तक पहुंचती है, जो गायकी, लयकारी, और उच्चारण का अभ्यास कराती है। इसे अमीर खुसरो का आविष्कार माना जाता है और दक्षिण भारतीय संगीत में इसे ‘तिल्लाना’ कहा जाता है। तराने के शब्दों का आमतौर पर कोई अर्थ नहीं होता, लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार इसमें अरबी-फारसी शब्द होते हैं जिनका धार्मिक अर्थ हो सकता है।
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