Meaning of Purvang And Uttarang in Indian Classical music
पुर्वांग उत्तरांग क्या है – सप्तक का विभाजन तथा रागों का समय
Purvang Aur Uttarang – भारतीय संगीत में सप्तक को दो बराबर भागों में विभाजित करने की परंपरा है। इसे तार द्वारा जोड़ा गया और सप्तक को सारेगमपधनिसां में विभाजित किया गया। इस प्रकार, सप्तक का प्रथम भाग सारेगम को पूर्वांग और दूसरे भाग पधनि सां को उत्तरांग कहा गया।
पूर्वांग और उत्तरांग का विस्तार:
सप्तक के पूर्वांग का क्षेत्र सा से प तक और उत्तरांग का क्षेत्र म से तार सा तक माना गया। यह विस्तार विशेष कठिनाइयों को दूर करने के लिए किया गया।
24 घंटे का समय विभाजन:
सप्तक के दो हिस्सों की तरह, 24 घंटों को भी दो बराबर भागों में बांटा गया। पहले भाग को 12 बजे दिन से 12 बजे रात तक और दूसरे भाग को 12 बजे रात से 12 बजे दिन तक रखा गया। पहले भाग को पूर्वार्ध और दूसरे भाग को उत्तरार्ध कहा गया।
Purwang Raag and Uttarang Raag
पूर्व राग और उत्तर राग:
पूर्व राग वे हैं जो दिन के पहले भाग (पूर्वार्ध) अर्थात् 12 बजे दिन से 12 बजे रात तक गाए जाते हैं। वहीं, उत्तर राग वे होते हैं जो दिन के दूसरे हिस्से (उत्तरार्ध) अर्थात् 12 बजे रात से 12 बजे दिन तक गाए जाते हैं।
वादी स्वर का राग के समय से सम्बन्ध:
हिंदुस्तानी संगीत में यह नियम है कि जिन रागों में वादी स्वर सप्तक के पूर्वांग (सारेगम) में से कोई स्वर होता है, वे दिन के पूर्वार्ध में गाए जाते हैं। इसके विपरीत, जिन रागों में वादी स्वर सप्तक के उत्तरांग (पधनि सां) में से कोई स्वर होता है, वे दिन के उत्तरार्ध में गाए जाते हैं।
उदाहरण के लिए, बिलावल में ध वादी स्वर है, जो सप्तक के उत्तरांग में आता है, इसलिए इसका गायन-समय दिन के उत्तरांग में होगा। इसी प्रकार, कल्याण में ग वादी स्वर है, जो सप्तक के पूर्वांग में आता है, इसलिए इसका गायन-समय दिन के पूर्वांग में होगा।
वादी और सम्वादी स्वर का संबंध:
वादि और सम्वादी स्वर हमेशा सप्तक के दोनों हिस्सों में से होते हैं। यदि वादी स्वर पूर्वांग में है, तो सम्वादी स्वर उत्तरांग में होगा और इसके विपरीत।
उदाहरण:
- भीमपलासी राग में म वादी है और सा सम्वादी है। यदि पूर्वांग क्षेत्र सा से म तक ही माना जाता है, तो वादी और सम्वादी स्वर दोनों एक ही हिस्से में होंगे, जो नियम के खिलाफ है।
- बसन्त राग में तार सा वादी और पंचम सम्वादी है। यदि उत्तरांग क्षेत्र केवल प से तार सां तक माना जाता है, तो वादी और सम्वादी स्वर उत्तरांग में होंगे, जो नियम के खिलाफ होगा।
- इसी प्रकार, भैरवी राग में म और सा वादी-सम्वादी हैं।
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