तान किसे कहते है – तान की परिभाषा
Taan in music
“राग के स्वरों को अगर द्रुत गति में विस्तार किया जाए तो उसे तान कहते हैं।”
Taan – तान और आलाप में बस गति का अंतर होता है। तान कई प्रकार के होते हैं- अलंकारिक तान, सपाट तान, छूट तान इत्यादि। तान का प्रयोग गाने के बीच में होता है। वाद्यों में प्रयोग किए जाने वाले तानों को तोड़ा कहते हैं। छोटे ख्याल की गायकी में अधिकतर दुगुन और कभी कभी बराबर के लय की तानें गाते हैं। बड़ा ख्याल में चौगुन और अठगुन के लय की तानें गाते हैं। वैसे तो तान के कई प्रकार होते थे, लेकिन आधुनिक काल में तान के सिर्फ 2 प्रकार प्रचलित है – बोल -आलाप और बोल-तान जब गीत के शब्दों को लेकर आलाप करते हैं तो उसे बोल-आलाप कहते हैं। जब तान में गीत के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो उसे बोल-तान कहते हैं। बोल-आलाप मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। लय-बद्ध और लय-रहित।
तान कितने प्रकार के होते हैं ( Taan Ke Prakar )
संगीत में तान के निम्नलिखित प्रकार हैं
- शुद्धतान
- कूटतान
- मिश्र तान
- खटके की तान
- झटके की तान
- वक्रतान
- अचरक तान
- सरोक तान
- लड़ंत तान
- सपाट तान
- गिटकरी तान
- जबड़े की तान
- हलक – तान
- पलट – तान
- बोल – तान
- आलाप
- बढ़त
तान के प्रकार – Types of Taan
शुद्ध तान
शुद्ध-तान – जिस तान (Taan) में स्वरों का क्रम एकसा हो और आरोह – अवरोह सीधा – सीधा हो, उसे ‘शुद्ध तान‘ कहते हैं । जैसे — ‘सा रे ग म प ध नि साँ‘ ‘सां नि ध प म ग रे सा।‘ इसे ‘सपाट तान‘ भी कहते हैं ।
कूट तान
कूट-तान – जिस तान (Taan) में स्वरों का क्रम या सिलसिला स्पष्ट प्रतीत न हो, उसे ‘कूट तान कहेंगे । यह हमेशा टेढ़ी – मेडी चलती है । जैसे – ‘सारे गरे धप मप रेग मप घसा धप इत्यादि ।
मिश्र तान
मिश्र-तान – ”शुद्ध तान‘ और ‘कटतान‘ , इन दोनों का जिसमें मिलाप या मिश्रण हो, उसे ‘मिश्र तान‘ कहेंगे । जैसे – ‘प ध नि सां ग म प ध ध प म प ग म रे सा‘ । इसमे ‘कूट तान‘ और ‘शुद्ध तान‘ दोनों मिली हुई हैं ।
खटके की तान
खटके की तान – स्वरों पर धक्का लगाते हुए तान (Taan) ली जाए, तो उसे ‘खटके की तान‘ कहेंगे ।
झटके की तान
झटके की तान – जब तान दुगुनी चाल में जा रही हो और यकायक बीच में चौगुन की चाल में जाने लगे, तो उसे ‘झटके की तान‘ कहेंगे । जैसे – ‘सा रे ग म प ध नि सां नि ध प में सारे गम पधनिसां निधपम गरेसानि ‘ ।
वक्रतान
वक्रतान – यह कूट तान के ही समान होती है । वक्र का अर्थ है टेड़ा, अर्थात् जिसकी चाल सीधी न हो, जिसमें स्वरों का कोई क्रम न हो। इसे “वक्रतान” कहेंगे ।
अचरक तान
अचरक-तान – जिस तान (Taan) में प्रत्येक दो स्वर एकसे बोले जाएँ; जैसे- “सासा रेरे गग मम पर धध” । इसे “अचरक की तान” कहेंगे ।
सरोक तान
सरोक-तान – जिस तान (Taan) में चार – चार स्वर एकसाथ सिलसिलेवार कहे जाएँ; जैसे – “सारेगम रेगमप गमपध मपधनि” । इसे “सरोक तान” कहेंगे ।
लड़ंत तान
लड़ंत-तान – जिस तान में सीधी – आड़ी कई प्रकार की लय मिली हुई हों तो उसे “लड़ंत तान” कहते हैं” जैसे – “निसा निसा रे रे रे रे निध निध सा सा सा सा” इत्यादि । इन ताना में गायक और वादक की लड़त बड़ी मज़दार होती है ।
सपाट तान
सपाट-तान – जिस तान में क्रमानुसार स्वर तेजी के साथ जाते हों, उसे “सपाट तान” हैं; उदाहरणार्थ – “मपधनि सारेगम पधनिसां रेंगमंप” इत्यादि ।
गिटकरी तान
गिटकरी-तान – दो स्वरों को एकसाथ शीघ्रता से एक के पीछे दूसरा लगाते हुए यह तान ली जाती है । इस प्रकार के तान को हम “गिटकारी तान” कहते हैं । जैसे – “निसा निसा सारे सारे रेग रेग गम गम मप मप पध पध निसां निसा” इत्यादि ।
जबड़े की तान
जबड़े की तान – कंठ के अंतस्तल से आवाज़ निकालकर जबड़े की सहायता से जब तान ली जाती है, तो उसे “जबड़े की तान” कहते हैं । यह मुश्किल होती है और सुलझे हुए गायक ही ऐसी तान प्रस्तुत करने में समर्थ होते हैं ।
हलक तान
हलक तान – जीभ को क्रमानुसार भीतर – बाहर ले जाते हुए “हलक – तान” ली जाती है ।
पलट तान
पलट तान – किसी तान को लेते हुए अवरोह करके लौट आने को “पलट – तान” या “पलटा तान” कहते हैं; यथा – सांनिधप मगरेसा ।
बोल तान
बोल तान – जिन तानों में तान के साथ – साथ गीत के बोल भी मिलाकर विलंबित, मध्य और द्रुत, आवश्यकतानुसार ऐसी तीन लयों में गाए जाते हैं, वे “बोल – ताने” कहलाती हैं । जैसे – गमं रेसा मंध मंप, गुनि जन गाऽ वत
आलाप
आलाप की परिभाषा – गायक जब अपना गाना आरंभ करता है, तो राग के अनुसार उसके स्वरों को विलंबित लय में फेनाकर यह दिखाता है कि कौन सा राग गा रहा है। आलाप को स्वर – विस्तार भी कहते हैं; जैसे – बिलावल का स्वर – विस्तार इस प्रकार शुरू करेंगे – “ग ऽ, रे ऽ, साऽ सा, रे सा ऽ ग ऽ म ग प ऽ म ग, म रे, सा ऽऽऽ इत्यादि ।
बढ़त
बढ़त – जब कोई गायक, गाना गाते समय एक – एक या दो – दो स्वरों को लेते हुए या छोटे – छोटे स्वर – समुदायों से बढ़ते हुए बड़े – बड़े स्वर – समुदायों पर आकर लय को धीरे – धीरे बढ़ाता है और फिर “बोल – तान” गमक इत्यादि का प्रयोग करता है, तब उसे “बढ़त” कहते हैं ।
For More Raag
For Classical Music Theory Please Visit – Here
Click For Harmonium NotesClick For Guitar ChordsClick For Indian Classical Music
THANK-YOU
आपका हमारी पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद! हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए लाभदायक रही होगी। यदि आप इस पोस्ट में किसी भी प्रकार की त्रुटि पाते हैं, तो कृपया हमें कमेंट करके बताएं। हम अपनी त्रुटियों को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
हमारा उद्देश्य है कि हम आपको भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहराइयों से परिचित कराएँ और आपके संगीत प्रेम को और अधिक समृद्ध बनाएँ। आपके सुझाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं। यदि आप किसी विशेष राग की बंदिश या परिचय के बारे में जानना चाहते हैं, तो हमें अवश्य बताएं। हम आपकी जरूरतों के अनुसार अगली पोस्ट में उस राग की जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे।
आपके समर्थन और प्रोत्साहन के लिए हम आभारी हैं। कृपया जुड़े रहें और हमारी पोस्ट को अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा करें।
धन्यवाद और शुभकामनाएँ!
प्रणाम
IndianRaag.com