(स्वामी हरिदास) Swami haridash jivan parichay
- स्वामी हरिदास जी का जीवन परिचय – “भक्त चरितामृत” के अनुसार स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1537 के भादो मास में (सन 1490) जन्मआष्ट्मी को हुआ, जो सारस्वत ब्राम्हण थे |ऐसा माना जाता है जोकि एक सारस्वत ब्राह्मण थे। इनके पिता आशुधीर तथा माता गंगादेवी बड़े ही धार्मिक और साधु संतो के भक्त थे।
इनके जन्म स्थान और गुरु के विषय में कई मत प्रचलित हैं। इनका जन्म समय कुछ ज्ञात नहीं है। अतः स्वामी जी के जन्मतिथि और जन्म स्थान के बारे में बहुत मदभेद हैं एक मतानुसार उनका जन्म पंजाब के मुल्तान अथवा हरियाणा के किसी गाँव में हुआ था | कुछ अन्य मतानुसार वो उत्तरप्रदेश के अलीगढ जिले में जन्मे थे तथा उनके ही नाम से हरिदासपुर ग्राम बसा हैं | स्वामी हरिदास में बचपन से ही ईश्वर के प्रति भक्ति भावना जागृत हुई। इन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में ही सन्यास लेकर वृंदावन चले गए और ‘निधिवन निकुंज’ में एक छोटी से कुटिया बनाकर रहने लगे। इन्होंने बहुत ही साधारण जीवन जिया, जीवन की कम से कम आवश्यकताओं की पूर्ति इन्हें अधिकतम सुकून देती थी। कुछ संगीत ग्रंथों में स्वामी हरिदास को ‘नादब्रह्म योगी‘ कहा है; कहते है की स्वामी जी ने नाद के द्वारा ब्रह्म का साक्षात्कार किया। भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे।वे प्राचीन शास्त्रीय संगीत के अद्भुत विद्वान एवम् चतुष् ध्रुपदशैली के रचयिता हैं। प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे। अकबर इनके दर्शन करने वृन्दावन गए थे। ‘केलिमाल’ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं। इनकी वाणी सरस और भावुक है। ये महात्मा वृन्दावन में निंबार्क सखी संप्रदाय के संस्थापक थे और अकबर के समय में एक सिद्ध भक्त और संगीत-कला-कोविद माने जाते थे। कविताकाल सन् 1543 से 1560 ई. ठहरता है। प्रसिद्ध गायनाचार्य तानसेन इनका गुरूवत् सम्मान करते थे।
यह प्रसिद्ध है कि स्वामी हरिदास अपनी कुटिया छोड़कर कही नहीं जाते थे। बादशाह अकबर, मिया तानसेन से प्रतिदिन स्वामी हरिदास की प्रशंसा सुना करता था, इसी कारण अकबर के मन में हरिदास जी का गायन सुनने की प्रबल इच्छा जागृत हुई।वे तानसेन के साथ वृंदावन गए और स्वामी जी की कुटिया के निकट एक झाड़ी में छिपकर बैठ गए। स्वामी जी को गायन के लिए तानसेन एक ध्रुपद जानबूझ कर अशुद्ध गाने लगे, स्वामी जी ने आश्चर्य में आकर तानसेन को डांटा और उसका शुद्ध गायन तानसेन को सुनाया, तब बाहर झाड़ी में छिपे अकबर बादशाह आत्मविभोर हो गए।
गायन सुनाने के बाद जब स्वामी जी को यह ज्ञात हुआ की अकबर को उनका गायन सुनाने के लिए ही तानसेन ने यह उक्ति निकली थी तो उन्होंने कहा कि तुमने छल से मेरा गायन अकबर को सुनवाया है, यह बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है खैर जाओ अब बादशाह को अंदर बुला लाओ कहते है की अकबर उनके गायन से इतना भाव विभोर हो गया था की उसने स्वामी जी के चरण पकड़ लिए और अपना एक बहुमूल्य हार उनके चरणों में रख दिया लेकिन स्वामी जी ने आभार प्रदर्शित करते हुए वह हार वापस लौटा दिया।
स्वामी हरिदास के जीवन के विषय में बहुत कम सामग्री प्राप्त होती हैं, इसका कारण हैं की उस समय के कोई भी साहित्यकार या संगीतज्ञ अपने बारे में लिखना पसंद नहीं करते थे,
- स्वामी हरिदास की मृत्यु कब हुई – स्वामी हरिदास जी की मृत्यु संवत 1664 में हुई ऐसा माना जाता है। वृंदावन में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को प्रतिवर्ष हरिदास जयंती मनाई जाती है।
- स्वामी हरिदास के शिष्यों का नाम – स्वामी हरिदास जी के मुख्य शिष्य तानसेन, बैजूर बावरा, रामदास दिवाकर तथा राजा सौरसेन थे।
स्वामी हरिदास जी गायन के अतिरिक्त वादन और नृत्य में भी परांगत थे। उत्तर भारत में जो कुछ भी संगीत मिलता है वह स्वामी हरिदास जी की ही देन है।
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