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राग पूर्वी: Raag Purvi Parichay – Bandish – Taan & Alaap

Raga Purvi

इस पोस्ट में राग पूर्वी (Raag Purvi) का विस्तृत परिचय दिया गया है, जिसमें इसके थाट, आरोह-अवरोह, वादी-संवादी स्वर, और गायन का समय शामिल है। साथ ही, राग की विशेषताओं पर चर्चा की गई है, जैसे कि इसमें कोमल और शुद्ध स्वरों का प्रयोग, गंभीर प्रकृति, और इसका संधि प्रकाश के समय गाया जाना। इसके अलावा, राग पूर्वी की बंदिशें(Raag Poorvi Bandish) और तालबद्ध तानें को भी विस्तार से समझाया गया है, जिससे पाठक इस राग की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Raag Purvi – राग पूर्वी का परिचय

राग पूर्वी भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण राग है, जिसे पूर्वी थाट से उत्पन्न माना गया है। इस राग में रे और  कोमल, और नि शुद्ध तथा दोनों मध्यम स्वर (शुद्ध और तीव्र) का प्रयोग होता है। इसकी जाति संपूर्ण-संपूर्ण है, जिसमें गंधार वादी और निषाद संवादी स्वर होते हैं। इस राग का गायन और वादन सायंकाल के समय किया जाता है।

Raag Purvi Aaroh Avroh,

Purvi Raag Parichay

राग पूर्वी की विशेषताएँ

  1. आश्रय राग: राग पूर्वी अपने थाट का आश्रय राग है, और इसी के नाम पर थाट का नामकरण हुआ है।
  2. मध्यम स्वर का प्रयोग: इस राग के अवरोह में दोनों मध्यमों का प्रयोग होता है, और कभी-कभी दोनों मध्यम एक साथ भी प्रयोग किए जाते हैं। आरोह में सदैव तीव्र मध्यम प्रयुक्त होता है।
  3. पंचम स्वर का वर्जन: आरोह में ऊपर जाते समय पंचम स्वर अक्सर वर्ज्य कर दिया जाता है, जैसे – मे ध(k) नि सां।
  4. गंभीर प्रकृति: राग पूर्वी की प्रकृति गंभीर है, जिसमें मींड और गमक का अधिक उपयोग होता है। बड़ा और छोटा ख्याल, मसीतखानी, रजाखानी गतें सभी इस राग में शोभायमान होती हैं, लेकिन ठुमरी का गायन इस राग में नहीं होता।
  5. पूर्वांग वादी राग: यह पूर्वांग वादी राग है, जो संधि प्रकाश के समय (सायंकाल) गाया जाता है। इसकी चलन अधिकतर मंद्र और मध्य सप्तकों में होती है।


Raag Poorvi Bandish

राग पूर्वी बंदिश – स्थायी

नि  रे ग  रेग | प  –  – प | प ध  मे पमे | ग म ग –
का ऽ ज रऽ | का ऽ ऽ  रे |अ ति सु कऽ| वा ऽ रे ऽ

३                |x               |२                |०

मे रे ग  मे | मे – ग – |  मे रे ग मे |  ग  रे सा –
नै ऽ न ति | हां ऽ रे ऽ | ला ऽ ग त | प्या ऽ रे ऽ

३            |x             |२              |०

राग पूर्वी बंदिश – अंतरा

मे मे  ग ग | मे मे ध मध | सां सां सां सां | सां रें सां –
नि र ख त | ल ग त कऽ | र   त  म   न |  ब  स मे ऽ

३             |x                |२                 |०

नि रें गं नि | रें नि मे मेध | मे ग ग मे | ग  रे सा –
च प ल चा | ऽ प अ निऽ| या ऽ रे ऽ | प्या ऽ रे ऽ

३             |x                |२             |०

 

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Raag Purvi – राग पूर्वी की तानें

सम से 8 मात्रा की तानें:

  1. निरे गमे पमे पमे । गम गरे गरे सा- ।
  2. निरे रेग गमे मेप | पमे गम गरे सा- ।
  3. गग रेसा पप मेप । निनि धप मेग रेसा ।
  4. पप धप मेप सांसां। निनि धप मेग रेसा ।
  5. गमे पमे गम गरे । गरे सा.नि रेग मेप ।

 

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How To Read Sargam Notes

कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।

तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।

तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।

मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।

तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।

Raga Purvi

राग पूर्वी से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

 

1. राग पूर्वी की जाति क्या है?
2. राग पूर्वी का गायन समय क्या है?
3. राग पूर्वी के वर्ज्य स्वर कौन-कौन से हैं?
4. राग पूर्वी का ठाट क्या है?
5. राग पूर्वी के वादी और संवादी स्वर कौन से हैं?
6. राग पूर्वी का परिचय संक्षिप्त में
7. राग पूर्वी आरोह-अवरोह और पकड़

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