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राग पूरिया: Raag Puriya Parichay Bandish

इस पोस्ट में, हम राग पूरिया का परिचय (Raag Puriya Parichay) प्रस्तुत करते हैं, जिसमें Puriya Raag Notes, Raag Puriya Taan, और एक आकर्षक राग पूरिया बंदिश (Raag Puriya Bandish) “कैसी ये भलाई रे” के बारे में भी जानकारी मिलेगी, जो नोटेशन के साथ पूरी होगी।

“कोमल रिषभ अरु तीरब तब, जहाँ न पंचम होई।
गनी वादी सम्वादी है, राग पूरिया सोई।”

राग चन्द्रिकासार

राग पूरिया परिचय

Raag Puriya Parichayराग पूरिया का जन्म मारवा थाट से हुआ है। इस राग में कोमल ऋषभ और तीव्र मध्यम का प्रयोग होता है। चूंकि इसमें पंचम स्वर वर्जित है, इसलिए इसकी जाति षाडव मानी जाती है। राग के वादी स्वर गंधार और संवादी निषाद हैं। इसका गायन समय संध्या, यानी शाम 4 बजे से 7 बजे तक है।

राग पूरिया संक्षिप्त परिचय:

राग पूरिया की विशेषताएँ

  1. इतिहास की झलक: प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में राग पूरिया का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, इसलिए इसे यावनिक राग भी कहा जाता है, जैसे राग बहार।

  2. चलन और स्वरुप: राग पूरिया का स्वरों का विस्तार मुख्यतः मंद्र और मध्य सप्तक में होता है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें तार सप्तक के स्वरों का प्रयोग नहीं होता। इसे पूर्वांग प्रधान राग कहा जाता है।

  3. तानपूरे की धुन: इस राग में पंचम स्वर का प्रयोग न होने के कारण, तानपूरे के प्रथम तार को मंद्र निषाद से मिलाया जाता है। इस प्रक्रिया से निकली ध्वनि मधुर और आकर्षक होती है।

  4. गंभीरता और भाव: राग पूरिया की प्रकृति में एक गहनता होती है। यह राग धीमे और तेज गति वाले ख्याल गायन के लिए उपयुक्त है। साथ ही इसमें मसीतखानी और रजाखानी दोनों प्रकार की गतें बजाई जाती हैं।

  5. स्वर सजावट: इस राग में गमक, कण और मींड का विशेष महत्व है। इन सजावटी तत्वों का उपयोग इसकी बनावट और भावनात्मक गहराई को बढ़ाता है।

  6. राग पूरिया और राग मारवा का भेद: राग पूरिया को राग मारवा से अलग पहचान दिलाने के लिए, इसमें धैवत से गंधार पर मींड के साथ आया जाता है। इसी तरह, अवरोह में निषाद से मध्यम पर आते समय धैवत का अल्प प्रयोग किया जाता है।

  7. संधिप्रकाश और परमेल प्रवेशक राग: राग पूरिया संधिप्रकाश और परमेल प्रवेशक दोनों कहलाता है। इसके विशिष्ट स्वरों के कारण, यह संध्या के समय का राग है और मारवा थाट से कल्याण थाट के रागों की ओर प्रवेश कराता है।

  8. सम्बंधित राग: राग पूरिया को मारवा और सोहनी रागों के साथ जोड़ा जा सकता है। इन रागों की प्रकृति में कुछ समानताएँ भी पाई जाती हैं।

मुख्य स्वर (न्यास के स्वर): सा, ग, और नि

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How To Read Sargam Notes

कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या ( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।

तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।

तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।

मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।

तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।

नमस्कारम् 🙏🏻

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