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राग जयजयवन्ती: Raag Jaijaiwanti Parichay Bandish Alaap & Taan

Raag Jaijaiwanti Parichay

इस पोस्ट में, हम राग जयजयवंती का परिचय (Raag Jaijaiwanti Parichay) प्रस्तुत करते हैं, जिसमें raag jaijaiwanti bandish, Raag jaijaiwanti Taan, और एक आकर्षक राग जयजयवंती बंदिश (raag jaijaiwanti bandish) “दामिनि दमके डर मोहे लागे” के बारे में भी जानकारी मिलेगी, जो नोटेशन के साथ पूरी होगी।

राग जयजयवंती का परिचय

Raag Jaijaiwanti – राग जयजयवन्ती भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक प्रसिद्ध राग है, जो खमाज थाट से उत्पन्न माना जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर और कोमल है, और यह रात्रि के द्वितीय प्रहर के अंतिम भाग में गाया-बजाया जाता है।

जयजयवन्ती में दोनों गंधार (शुद्ध और कोमल) और दोनों निषाद (शुद्ध और कोमल) का प्रयोग किया जाता है, जिससे यह राग श्रोताओं को विशेष रूप से प्रभावित करता है। इस राग का वादी स्वर रिषभ और संवादी स्वर पंचम है। राग की जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण है, जिसका अर्थ है कि आरोह और अवरोह में सातों स्वरों का प्रयोग होता है

राग जयजयवंती आरोह अवरोह

Raag Jaijaiwanti Parichay

राग जयजयवन्ती विशेषताएँ

  1. निषाद का प्रयोग: आरोह में पंचम के साथ शुद्ध निषाद और धैवत के साथ कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है, जैसे म पनि सां, ध नि रें। अवरोह में सदैव कोमल निषाद का प्रयोग होता है।

  2. गम्भीर प्रकृति: इस राग की प्रकृति गम्भीर है, और इसकी चलन तीनों सप्तकों में समान रूप से होती है। इसमें बड़ा ख्याल, छोटा ख्याल, ध्रुपद, धमार सभी शोभा देते हैं, लेकिन ठुमरी नहीं गाई जाती।

  3. दो अंगों से गायन: इस राग में दो अंग प्रमुख होते हैं: देश और बागेश्वरी। देश अंग के आरोह में धैवत वर्ज्य कर शुद्ध नि का प्रयोग किया जाता है, जबकि बागेश्वरी अंग में पंचम छोड़कर ध और नि का प्रयोग होता है।

  4. कोमल गंधार का प्रयोग: अवरोह में कोमल गंधार का अल्प प्रयोग दो रिषभों के बीच होता है, जैसे रे ग रे सानि साधनि रे, सा

  5. प रे संगति: इस राग में प रे की संगति प्रचुर मात्रा में होती है। यहां पर पंचम मंद्र सप्तक का होना चाहिए, जबकि रिषभ तार सप्तक का होना चाहिए।

  6. परमेल-प्रवेशक राग: यह राग रात्रि के द्वितीय प्रहर के अंतिम समय में गाया जाता है और इसके बाद काफी थाट के रागों का समय प्रारम्भ होता है। जयजयवन्ती में खमाज और काफी दोनों थाटों के स्वर लगते हैं, जहां शुद्ध गंधार खमाज थाट का और कोमल गंधार काफी थाट का सूचक है।

समप्रकृति राग

राग देश को जयजयवन्ती का समप्रकृति राग माना जाता है, और दोनों रागों में कई समानताएँ होती हैं। हालांकि, उनकी चलन और प्रकृति में कुछ भिन्नताएँ भी होती हैं।

न्यास के स्वर

जयजयवन्ती में सा, रे, और प स्वर पर विशेष रूप से न्यास किया जाता है। इन स्वरों का राग के आलाप और तानों में प्रमुखता से प्रयोग होता है।

विशेष स्वर-संगतियां
  1. सा, ध नि रे ऽ सा
  2. रे ग म प, ध ग म रे ग रे सा
  3. नि ध प रे ऽ ग रे  सा

Raag Jaijaiwanti Bandish

 
 
दामिनि दमके डर मोहे लागे – स्थायी 

.

सा – .ध .नि | रे  ग  रे  – | ग ग म  म | म गम रेग रे
दा ऽ  मि नि | द म  के ऽ | ड र मो हे | ला ऽऽ ऽऽ गे
3               | x              | 2            | o     

.नि .नि सा – | रे ग रे सा | नि धप   प  पध | म गम रेग रे
 उ   म  गे ऽ | द ल बा ऽ | द  लऽ श्या ऽऽ | म ऽऽ घऽ टा
3                | x            | 2                     | o     

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दामिनि दमके डर मोहे लागे – अंतरा

.

म  प  नि – | सां – सां सां | रें  रेंग  रें सां | रें नि सां –
लि ख भे ऽ | जो  ऽ स खि | उ सऽ नं  ऽ | द न को ऽ
3              | x                | 2               | o     

सां – नि – |  ध  – म  प  | नि – ध म |  रे   ग  रे  –
मे  ऽ री  ऽ | खो ऽ ल कि | ता ऽ ब दे | खो व्य था ऽ
3              | x               | 2             | o     

How To Read Sargam Notes

कोमल स्वर: कोमल (मंद) स्वरों को “(k)” या “( _ )” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

नोट: आप परीक्षाओं में (रे, ग, ध, नि,) को इस प्रकार लिख सकते हैं।

तीव्र स्वर: तीव्र (तीव्र) स्वर को “(t)” या “(मे)” से दर्शाया जाता है। उदाहरण के लिए:

स्वर को खींचना: गाने के अनुसार स्वर को खींचने के लिए “-” का उपयोग किया जाता है।

तेज़ स्वर: जैसे “रेग” लिखे हुए स्वर यह दर्शाते हैं कि इन्हें तेज़ी से बजाया जाता है या एक बीट पर दो स्वर बजाए जाते हैं।

मंद्र सप्तक (निम्न सप्तक) स्वर: स्वर के नीचे एक बिंदु (जैसे, “.नि”) मंद्र सप्तक के स्वर को दर्शाता है।

तार सप्तक (उच्च सप्तक) स्वर: एक रेखा या विशेष संकेत स्वर को तार सप्तक में दर्शाता है।

राग जयजयवन्ती से सम्बंधित कुछ प्रश्न

  1. राग जयजयवन्ती किस थाट का राग है?

    • राग जयजयवन्ती खमाज थाट का राग है।
  2. राग जयजयवन्ती की जाति क्या है?

    • राग जयजयवन्ती की जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण है, यानी आरोह और अवरोह में सातों स्वर (सप्तक) प्रयोग होते हैं।
  3. राग जयजयवन्ती का आरोह, अवरोह और पकड़ क्या है?

    • आरोह: सा, ध नि रे, रेगमप, नि सां।
    • अवरोह: सांनिधप, धगम रे ग रे सा।
    • पकड़: रे ग रे सा, नि साधु नि रे।
  4. राग जयजयवन्ती का गायन समय क्या है?

    • राग जयजयवन्ती का गायन समय रात्रि के दूसरे प्रहर के अंतिम भाग में है।
  5. राग जयजयवन्ती कब गाया जाता है?

    • इसे रात्रि के दूसरे प्रहर के अंत में गाया जाता है, विशेषकर मध्यरात्रि के बाद।
  6. राग जयजयवन्ती का वादी और संवादी स्वर क्या है?

    • राग जयजयवन्ती का वादी स्वर रिषभ (रे) और संवादी स्वर पंचम (प) है।
  7. राग जयजयवन्ती का आरोह अवरोह पकड़ क्या है?

    • आरोह: सा, .ध .नि रे, रे ग म प, नि सां
    • अवरोह: सां नि ध प, ध ग म रे ग रे सा
    • पकड़: रे ग रे सा, .नि सा .ध .नि रे

 

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