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त्रिवट गायन शैली – Trivat

Trivat In Music

इस पोस्ट में त्रिवट संगीत शैली के बारे में जानें—यह कैसे कविता, तराना, और पखावज या तबला के बोलों का अनोखा मिश्रण है। पढ़ें इसके प्रमुख गुण, गायन की विधियाँ, और इसे गाने में आने वाली चुनौतियाँ

त्रिवट क्या है ?

त्रिवट एक अनोखी संगीत शैली है जिसमें कविता, तराना और पखावज या तबला के बोलों का मिश्रण होता है। इसे तिरवट या त्रिवट भी कहा जाता है। इस शैली में ख्याल के बोलों की जगह तबले या पखावज के बोलों का प्रयोग किया जाता है, जिससे एक विशिष्ट गायन शैली(Gayan Shaili) बनती है। त्रिवट में पखावज या तबले के बोलों को किसी राग में बांधकर गाया जाता है और यह किसी भी राग में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस शैली की गायकी को काफी कठिन माना जाता है, और इसे तीनताल तथा एकताल में गाया जाता है।

इसमें तीन चीज़ो का मिश्रण है, इसलिए इसे त्रिवत कहा जाता है. इसमें कविता, तराना तथा पखावज अथवा तबला के बोल होते है

त्रिवट गायन शैली की प्रमुख विशेषताएँ:

  1. द्रुत लय में गायन: त्रिवट शैली में तराना की तरह इसे भी सामान्यतः द्रुत लय में गाने का प्रचलन है। इसमें मृदंग या पखावज के बोल विभिन्न लयों में गाए जाते हैं और वे लय मृदंग या पखावज वादक द्वारा बजाए जाते हैं, जिससे अद्भुत रस का सृजन होता है।
  2. स्वर और लय प्रधान: त्रिवट एक स्वर और लय प्रधान शैली है, जिसमें पाटादारों का स्वर और ताल प्रयोग किया जाता है। इसमें पाट और परोक्ष रूप में स्वर और ताल के अंगों की गणना की जा सकती है।
  3. तराना के बोलों का प्रयोग: त्रिवट में कविता की जगह तराने के बोलों को मृदंग या पखावज की सहायता से छन्दोबद्ध करके स्वर और ताल के साथ गाया जाता है।

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